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________________ ११ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ जैन मन्दिर इस प्रान्तमें सबसे प्राचीन जैन मन्दिरके चित्र बिहार में पटनाके लोहानीपुर मुहल्ले में पाये गये हैं। यहाँ एक जैन मन्दिरकी नींव मिली है। यह मन्दिर ८-१० फुट वर्गाकार था। यहाँकी ईंटें मौर्यकालीन सिद्ध हुई हैं। यहाँसे एक मौर्यकालीन रजत सिक्का और एक जिनमूर्ति मिली थी जो पटना म्यूजियममें सुरक्षित है। . इसके पश्चात् पाकवीर-समूहके ध्वस्त मन्दिर हैं। (पाकवीर समूहसे हमारा आशय उन ध्वस्त मन्दिर-मूर्तियोंसे है जो पाकवीर और आस-पास बिखरे पड़े हैं। ) ऐसा विश्वास किया जाता है कि पाकवीर और उसके आसपास विस्तृत क्षेत्रमें जैनोंने, जो आजकल सराक कहलाते हैं, अनेक जैनमन्दिरों और मूर्तियोंका निर्माण कराया था। वास्तव में मगध, अंग, ताम्रलिप्ति, वंग, दक्षिण कोशल, तोषल, उण्ड्र, पुण्ड्र और कलिंग जैनधर्मका प्रभाव क्षेत्र था। सम्राट् खारवेलके शासन-काल में तो इस भूभाग में अनेक जैन मन्दिर और मूर्तियाँ बनी थीं, किन्तु उसके पश्चात् भी गुप्त साम्राज्य तक कोई शक्तिशाली तथा धर्मान्ध शासक नहीं हुआ, जो इन जैन मन्दिरों और मूर्तियों को नष्ट करनेकी चिन्ता करता। जब बंगालमें राजा शशांकका उदय हुआ तो वह प्रबलवेगसे सारे बंगालका स्वामी बन बैठा। फिर उसने तेजीसे उड़ीसा, कोंगद, कन्नौज आदि राज्योपर अधिकार कर लिया। उसका शासनकाल छठी शताब्दीके अन्तिम कुछ वर्षोंसे लगभग ई. स. ६१९ तक माना जाता है। वह कटर वेदानुयायी था। बौद्ध और जैनधर्मसे उसको हार्दिक द्वेष था। अपने सैनिक अभियानोंके समय मार्गमें जो बौद्ध विहार और जैन मन्दिर मिलते थे, उन्हें वह नष्ट करता जाता था। नालन्दाका प्रसिद्ध विश्वविद्यालय उसीने जलाया था, ऐसा माना जाता है। ___इसके पश्चात् चोलवंशी राजेन्द्र ( ई. स. १०१८ से १०४४ ) ने पाण्ड्य, चेर, सिंहल, चालुक्य के राजवंशों को पराजित किया। उसने कलिंग, ओड्र, दक्षिण कोशल और वंग तक अपना साम्राज्य-विस्तार किया। फिर उसने नौसैनिक अभियान कर मलय प्रायद्वीप, जावा, सुमात्रा, कैडाहपर अपनी विजय-वैजयन्ती फहरायी। कलिंग, ओड्र, दक्षिण कोशल और वंगअभियानके समय उसकी सेनाने मार्ग में पड़नेवाले सभी जैन मन्दिरों और मूर्तियोंका व्यापक विनाश किया, जैनोंके समलोच्छेदका कार्य किया। एक कट्टर शैवके रूप में उसने जैनधर्म और के आयतनोंका निर्मम विनाश किया। जिस प्रकार दक्षिणमें, वीर शैव लिंगायत के आचार्य अप्पारने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मा, जो नरसिंह वर्माका पुत्र था, को जैनसे शैव बनाकर जैनोंका विनाश कराया तथा शैव आचार्य सम्बन्दरने अपने सहयोगी सन्त तिरुनावुक्करसरके साथ पाण्ड्य राज सुन्दर पाण्ड्यको जैनसे शैव बनाकर हजारों जैनोंको बलात् शैव बनाया, आठ हजार जैनोंको कोल्हू में पेल दिया। उसने अनेक जैन मन्दिरों और मूर्तियोंका विध्वंस किया अथवा उन्हें परिवर्तित करके शैव मन्दिर और शिव बना लिया, उसी प्रकार चोलराज राजेन्द्रने १०२९ ई. में और पाण्ड्यनरेश जटावर्मन सुन्दर पाण्ड्यने ( सन् १२५१-१२६८ ) उड़ीसा, कलिंग और बंगालके जैन मन्दिरों और मूर्तियोंका विध्वंस किया। सम्भव है, मुस्लिम शासकोंके धर्मोन्मादने भी जैन मन्दिरों और मूर्तियोंका विध्वंस किया हो। बिहार-बंगालके हजारीबाग, मानभूम, सिंहभूम, राँची, पटना आदि जिलों और उड़ीसाके अयोध्या, नीलगिरि, अतसपुर, मयूरभंज आदि स्थानोंपर ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी तककी मूर्तियां १. पेदियपुराणम् ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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