SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-३ २४५ (१) भ. कुन्थुनाथकी ज्ञानधर कूट, (२) भ. नमिनाथकी मित्रधर कूट, (३) भ. अरहनाथकी नाटक कूट, ( ४ ) भ. मल्लिनाथकी सम्बल कूट, ( ५ ) भ. श्रेयान्सनाथकी संकुल कूट, ( ६ ) भ. पुष्पदन्तकी सुप्रभ कूट, (७) भ. पद्मप्रभकी मोहनकूट, (८) भ. मुनिसुव्रतनाथकी निर्जरकूट (९) भ. चन्द्रप्रभकी ललित कूट, (१०) भ. आदिनाथकी टोंक, (११) भ. शीतलनाथकी विद्युत्कूट, (१२) भ. अनन्तनाथकी स्वयम्भू कूट, (१३) भ. सम्भवनाथकी धवलदत्त कूट, ( १४ ) भ. वासुपूज्यकी टोंक, (१५ ) भ. अभिनन्दननाथका आनन्द कूट। __सभी टोंकोंके लिए मार्ग बने हुए हैं। इन टोंकोंमें भ. चन्द्रप्रभकी टोंक सबसे ऊंची है । इन टोंकोंमें तीर्थंकर भगवान्के चरण-चिह्न बने हुए हैं। भ. अभिनन्दननाथकी टोंकसे उतरकर जल मन्दिर में जाते हैं। यहाँसे पूनः गौतमस्वामीकी टोंकपर पहुँचते हैं, जहाँसे यात्रा प्रारम्भ की थी। यहाँसे पश्चिम दिशाकी ओर जाकर नौ टोंकोंकी वन्दना करनी चाहिए। उनके नाम इस प्रकार हैं (१) भ. धर्मनाथकी सुदत्तवर कूट, (२) भ. सुमतिनाथकी अविचल कूट, (३) भ. शान्तिनाथको शान्तिप्रभ कट, (४) भ. महावीरको टोक, (५) भ. सुपाश्वन (६) विमलनाथको सुवोर कूठ, (७) भ. अजितनाथकी सिद्धवर कूट, (८) भ. नमिनाथकी मित्रधरकूट (९) भ. पार्श्वनाथकी सुवर्णभद्र कूट। पार्श्वनाथकी टोंक अन्तिम और प्रमुख टोंक है। यहाँ पूजन करना चाहिए। यहाँपर यह यात्रा समाप्त हो जाती है और यहाँसे वापस लौटते हैं। कुल यात्रा १८ मीलकी पड़ती है, जिसमें ६ मील चढ़ाई, ६ मीलकी वन्दना और ६ मीलकी उतराई पड़ती है। _____ सम्मेदशिखर तीर्थराज कहलाता है। यहाँसे बीस तीर्थंकर और असंख्यात मुनियोंको निर्वाण प्राप्त हुआ है। इसलिए यहाँका कण-कण वन्दनीय है । यहाँको महिमा अचिन्त्य है। यहाँके माहात्म्यके बारेमें ठीक ही कहा है- "एक बार बन्दै जो कोई । ताहि नरक पशु गति नहिं होई ॥" वस्तुतः यह तीर्थ अनादिनिधन है। अनादिनिधन तीर्थ दो ही बताये गये हैं-अयोध्या और सम्मेदशिखर। अयोध्यामें सभी तीर्थंकरोंका जन्म होता है और सम्मेद शिखरमें सबका निर्वाण होता है। किन्तु इस हुण्डावसर्पिणी कालके प्रभावसे इस नियममें व्यतिक्रम हो गया। फलतः अयोध्यामें केवल ५ तीर्थंकरोंका जन्म हुआ और सम्मेदशिखरसे २० तीर्थकर मुक्त हुए। ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीर-इनका निर्वाण क्रमशः कैलाश, चम्पापुर, गिरनार और पावापुरसे हुआ। शेष २० तीर्थंकरोंका निर्वाण सम्मेदशिखरसे हुआ। डाकका पतामैनेजर, दिगम्बर जैन तेरहपन्थी अथवा बीसपन्थी कोठी, मु. सम्मेदशिखर, पो. मधुवन (जिला-हजारीबाग ) बिहार। कलकता-मधुवनसे ईसरी लौटकर पारसनाथ स्टेशनसे हवड़ा या स्यालदाको जाना चाहिए । स्टेशनपर रिक्शा, टैक्सी मिलते हैं। मछुआ बाजारके दिगम्बर जैन भवनमें ठहरना सुविधाजनक रहता है। कलकत्ता भारतका सबसे बड़ा शहर हैं। यहाँ चार दिगम्बर जैन मन्दिर हैं.-(१) दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर चावल पड़ी. (२) दिगम्बर जैन नया मन्दिर लोअर चितपर रुपर, (३) दिगम्बर जैन मन्दिर पुरानी बाड़ी, (४) पारसनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, बेलगछिया। इन मन्दिरोंके अतिरिक्त पांच चैत्यालय हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy