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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
किन्तु यहाँ आकर उन्होंने पाया क्या, खोया ही । धर्मं खोया, जन्म-स्थान खोया, धन खोया, अपना व्यवसाय खोया और मिला क्या - खेती-बाड़ीका धन्धा, जुलाहेका धन्धा |
मूल
अब समय अनुकूल है । इन्हें इनका विगत गौरव, इनके पूर्वजोंका धर्म और विरासत में मिले संस्कारों का स्मरण दिलाया जाये । जैन लोगों का धर्म - वात्सल्य मिले तो ये पुनः अपने धर्मको स्वीकार कर सकते हैं और इन प्रान्तोंमें बिखरी हुई प्राचीन कला - सामग्रीको उचित एवं व्यवस्थित रूप दे सकते हैं ।
उड़ीसा में सराक
इस प्रान्त में मुख्यतः सराकोंकी दो जातियाँ हैं - एक रंगूनी तांती, दूसरी सराक ताँती । ताँती लोग ब्राह्मणोंके हाथका पानी भी नहीं पीते । शुद्ध शाकाहारी हैं । जल छानकर पीतेहैं । प्रत्येक कार्यमें छने हुए जलका ही प्रयोग करते हैं। रात्रि भोजन नहीं करते । कार्तिक वदी १५ को दीपक जलाकर आपसमें लड्डू बाँटते हैं । वर्षमें एक बार खण्डगिरि उदयगिरिकी यात्राको जाते हैं । ये नग्नगुरुके उपासक हैं जिसे ये लोग 'अलक' कहते हैं । ये साधु केवल कौपीन धारण करते हैं, मोरका पंखा और नारियलका कमण्डलु धारण करते हैं । दिनमें एक बार भोजन करते हैं । रंगूनी ताँतीको रंगिया भी कहा जाता है। दूसरी जाति सराक ताँती है। इनका व्यवसाय कपड़ा बुना है । ये लोग पंच उदुम्बर, प्याज, गोभी, आलू आदि नहीं खाते । ये लोग माघ शुक्ला सप्तमीको खण्डगिरिकी यात्राको जाते हैं । इनमें भी दो दल हैं। एक वे जिनके विवाह, शुद्धि संस्कार आदि इनके आचार्य कराते हैं । दूसरे वे जो स्वयं ही सब संस्कार कर लेते हैं । सराक ताँती और रंगूनी ताँती इन दोनोंमें परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता । बरहमपुर, गंजाम, कटक और पुरी जिलोंमें इनका निवास अधिकतर है । इनके गोत्र इस प्रकार हैं - काशीनाग, जिनेश, साहू, दास, सेनापति, श्रीकृष्ण आदि । ये लोग साहू, पुष्टि, राउत, दास, सनावती, वेहरा, साँथरा, नायक, पात्र और महापात्र संज्ञाधारी हैं। ये उड़िया भाषा भाषी हैं।
बंगाल में सराक
इस प्रान्त मेदिनीपुर, पुरलिया, मानभूम सिंहभूम, वीरभूम, वर्धमान आदि कई जिलोंमें सराक लोग निवास करते हैं तथा इनमें प्राचीन जैन मन्दिर, उनके अवशेष और मूर्तियाँ भी मिलती हैं । कुछ स्थानोंपर जैन मूर्तियोंको जैनेतर लोग विभिन्न देवी-देवताओंके कल्पित नामों से पूजते हैं। मानभूम जिलेमें सराक लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं । मि. कूपलैण्डने सन् १९११ में मानभूम गजैटियर प्रकाशित किया था । उसमें उन्होंने सराकों के बारेमें लिखा है—
"इस जिलेमें एक विशेष जाति के लोग रहते हैं, जिन्हें सराक कहते हैं । इनकी संख्या बहुत है । ये लोग मूलत: जैन हैं । अनुश्रुतियोंके अनुसार ये और भूमिज एक ही जातिकी सन्तान हैं । ये लोग भूमिजोंके साथ बड़े हेल-मेलसे रहते हैं । सराक सदासे शान्तिप्रिय जाति रही है । यह जाति इस जिलेमें ईसा से पाँच-छह शताब्दी पूर्वसे रहती आयी है । पाकवीर में एक बड़ी मूर्ति भीरमर अथवा चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामीकी है जो इस जातिके लिए आराध्य देव है। प्रो. सर विल्सनने लिखा है कि महावीर स्वामी साधु दशामें वज्रभूमि और शुभ्रभूमिके देशों में आये थे, जहाँ भूमिज लोगोंने उन्हें दुर्वचन कहे, मारा भी, उनके ऊपर तोर भी चलाया और उनके ऊपर कुत्ते छोड़े । किन्तु इन उपसर्गों का उन्होंने कुछ खयाल नहीं किया | कर्नल डेल्टनका विचार है कि महावीर तीर्थंकरके लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं था । यह भी असम्भव नहीं