________________
कोटिशिला
सिद्धक्षेत्र
कोटिशिला निर्वाण-क्षेत्र है। निर्वाण-काण्ड (गाथा ) में इस सम्बन्धमें एक गाथा निम्न प्रकार है।
'जसहर-रायस्स सुआ पंचसया कलिंग देसम्मि ।
कोडिसिलाए कोडिमुणी णिव्वाण गया णमो तेसिं ।' इस गाथाके हिन्दी भाषानुवादकने इसका अर्थ निर्वाण काण्ड (भाषा) में इस प्रकार किया है
जसरथ राजाके सुत कहे, देश कलिंग पांच सौ लहे ।
कोटिशिला मुनि कोटि प्रमाण, वन्दन करूँ जोर जुग पान ।। अर्थात् कलिंग देशमें स्थित कोटिशिलासे यशोधर राजाके पांच सौ पुत्र और एक करोड़ मुनि मोक्ष गये।
इस गाथाके अनुसार कोटिशिला सिद्धक्षेत्र या निर्वाण-क्षेत्र है। और यह स्थान कलिंगमें था।
'विविध तीर्थकल्प' के कर्ता आचार्य जिनप्रभ सूरिने 'कोटिशिला तीर्थकल्प' नामसे एक कल्प की रचना की है। इसमें कोटिशिलाकी अवस्थितिका निर्णय करते हुए वे लिखते हैं
__'इह भरह खित्तमज्झे तित्थं मगहासु अत्थि कोडिसिला।' अर्थात् इस भरत क्षेत्रमें मगध देशमें कोटिशिला अवस्थित है।
कोटिशिलाको विशेषता बताते हुए उन्होंने आगे लिखा है कि यह एक योजन लम्बी और एक योजन चौड़ी है । अर्धचक्री नारायण सुर-नर-खेचरोंके समक्ष इसे उठाकर अपने बलकी परीक्षा करते हैं। प्रथम नारायणने इसे उठाकर सिरके ऊपर तान दिया था। दूसरा नारायण सिर तक ही उठा सका। तीसरा गर्दन तक, चौथा वक्षस्थल तक, पाँचवाँ उदर तक, छठा कटिप्रदेश तक, सातवाँ जंघा तक, आठवाँ घुटनों तक तथा अन्तिम नारायण भूमिसे केवल चार अंगुल ऊपर ही उठा पाया। अवसर्पिगो कालके कारण मनुष्योंका बल क्रमशः हीन होता जाता है; यद्यपि तीर्थंकरोंका बल सभीका समान होता है। ..
दिगम्बर शास्त्रोंमें कोटिशिलाके सम्बन्धमें अन्य विवरण समान है, किन्तु कोटिशिला मगधमें थी, इसका समर्थन दिगम्बर शास्त्र नहीं करते।
ब्र. शीतल प्रसादजीने मद्रास ( वर्तमान तमिलनाड ) प्रदेशके गंजाम जिले में स्थित मालती पर्वतकी उस शिलाको कोटिशिला माना है जिसमें एक दीपक बना हुआ है। उसमें २५० सेर तेल आ सकता है। ग्रामवाले इसको दीपशिला कहते हैं। गंजाम जिला प्राचीन कलिंगमें था। यदि
१. मद्रास व मैसूर प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।