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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
अशोकके पिता बिन्दुसारने कलिंगको नहीं छेड़ा था, किन्तु तीन ओरसे उसे घेर लिया था। केवल समुद्रकी ओरसे ही कलिंग सुरक्षित था। बिन्दुसार जब चाहता, समुद्र-मार्गसे घेरकर कलिंगको आक्रान्त कर सकता था। अशोकके लिए आक्रमण करना इसलिए आवश्यक हो गया था क्योंकि कलिंग आन्ध्रसे मिलकर मगध साम्राज्यके लिए सिरदर्द पैदा कर सकता था। आन्ध्रको अशोकने बलात् अपने साम्राज्यमें मिला लिया था, यह दूसरी बात है कि आन्ध्रकी आत्माने अधीनता स्वीकार नहीं की थी। . अशोकके आक्रमण कालमें कलिंगकी कुल जनसंख्या अनुमानतः ७५ लाख थी। उसके पास लड़ाकू हाथी और समुद्री जहाजोंका बहुत विशाल बेड़ा था। कलिंगके निवासी प्रकृतिसे स्वाभिमानी और युद्धप्रिय थे। एक विशाल साम्राज्यकी विशाल सेनाकी उन्होंने तनिक भी परवाह नहीं की। देशकी कुल आबादीका ६ से ८ प्रतिशत तक कलिंगके युद्ध में झोंक दिया। वे गंगाके किनारेसे गोदावरी तक चप्पा-चप्पा भूमिके लिए लड़े। प्रत्येक गाँव और घर किला बन गया था। कलिंगवासी जहाँ भी लड़ रहा था, वहाँसे वह पीछे नहीं हटा । अशोकको अपनी सेनापर अभिमान था। उसका सेना-बल भी कलिंगके सेना-बलसे कई गुना था। उसने कलिंगपर यह आक्रमण अपने राज्याभिषेकके आठवें वर्षमें किया था। उसे इतने समयमें कोई देश, कोई राज्य, कोई जाति इतनी दुर्दमनीय, अडिग और अद्भुत पराक्रमवाली नहीं मिली, जितनी इस बार मिली थी। अशोक भयानक हो उठा। उसने सेनामें आज्ञा प्रचारित कर दी, 'क्रूरतापूर्वक कलिंगको दबा दो।' आदेश मिलते ही मगधके सैनिक पशु बन गये। जो मनुष्य सामने आया, जीता नहीं बचा; जो गाँव राहमें पडा, राखका ढेर हो गया। स्त्रियोंमें त्राहि-त्राहि मच गयी।
___ दो वर्ष तक यह युद्ध चला। नरसंहार, बलात्कार और आगजनी यही हुआ दो वर्ष तक । किसी कलिंगवासीने आत्म-समर्पण नहीं किया। अशोकने अपने शिलालेख नं. १३ में स्वीकार किया है कि कलिंगके युद्ध में एक लाख व्यक्ति मारे गये, डेढ़ लाख बन्दी बनाये गये और बादमें इससे कई गुने मरे।
इतिहासकारोंने कुछ निष्कर्ष निकाले हैं, जिनसे इस युद्धकी भयानकता पर नया प्रकाश पड़ता है । अशोकने अपने शिलाभिलेखमें जो कुछ लिखा है, वह सत्य है । किन्तु यह संख्या कलिंगके सैनिकोंकी है । सम्राट अशोकने अपने पक्षके हताहतोंकी संख्याका उल्लेख करना शायद उचित नहीं समझा। उस संख्याको भी मिला लिया जाये तो कुल संख्या बहुत बड़ी हो जायेगी। फिर जो सैनिक जख्मी हो गये और बादमें मर गये, उनकी संख्या भी वर्तमान संख्यासे कई गुनी अधिक रही होगी।
इतिहासकारोंने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि कलिंगके जिस राजाने अशोकके साथ युद्ध किया था, निश्चय ही वह एक जैन राजा था। अशोकने अपने १३वें अनुशासनमें यह भी स्वीकार किया है कि कलिंग-युद्ध में श्रमण और ब्राह्मण उभय सम्प्रदायके लोगोंने दुःख उठाये थे। अशोकने जिनको श्रमण कहा है, वस्तुतः वे जैन थे।
कलिंगवासियोंको अपने देशको स्वतन्त्रताके अपहरणसे जितना दुःख हुआ, उससे अधिक उनके हृदयमें इस बातकी पीड़ा थी कि उनके आराध्य देवता 'कलिंग जिन'की प्रतिमा उन्हें इतने -समय बाद भी वापस नहीं मिली।
१. The nation in arms, p. 148, by Gttz. Journal of the Bihar and Orissa Research Society, Vol. III. P., 410, by K. P. Jayaswal. Asoka, by Dr. Mookerji, p. 162.