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कटक
कटक उत्कल प्रदेशकी प्राचीन राजधानी है। कटकके तीन ओर नदियाँ हैं - महानदी, आँखाई और काठजोड़ी । यह हावड़ा जंकशनसे पुरीको जानेवाली रेलवे लाइनपर ४०२ कि. मी. दूर है | स्टेशनसे लगभग ५ कि. मी. दूर चौधरी बाजारमें जैन भवन है । यहाँ ठहरनेकी अच्छी सुविधा है । इसीके पृष्ठ भागमें प्राचीन चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर है । यह बड़ा मन्दिर कहलाता है तथा इस मन्दिरसे लगभग १०० गज दूर इसी बाजारमें दिगम्बर जैन चैत्यालय है ।
चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर
इसमें दो गर्भगृह हैं। दोनोंमें एक-एक वेदी है । बायीं ओरकी वेदीमें कुल ६ पाषाण प्रतिमाएँ हैं तथा मुख्य वेदीमें १६ पाषाणकी एवं ९ धातुकी प्रतिमाएँ हैं ।
बायीं ओर की वेदी - इस वेदीमें स्थित सभी प्रतिमाएँ प्राचीन हैं । कहते हैं, ये प्रतिमाएँ खण्डगिरिसे यहाँ लायी गयी थीं । इन प्रतिमाओंका प्रतिष्ठाकाल अनुमानतः १०वीं शताब्दी है । सभी प्रतिमाएँ सलेटी या श्याम वर्णकी हैं। सभी एक ही कालकी प्रतीत होती हैं ।
( बायें से दायेंको ) ( १ ) एक सवा दी फुटी शिलाफलक में खड्गासन पार्श्वनाथ प्रतिमा है । अधोभागमें एक स्त्री लेटी हुई है । उसके दोनों ओर हाथ जोड़े हुए दो भक्त खड़े हैं । सम्भवतः यह तीर्थंकर माताकी मूर्ति है । पार्श्वनाथ मूर्तिके दोनों ओर मध्य भागमें चमरवाहक इन्द्र चमर लिये हुए खड़े हैं। इनके दोनों ओर ३ उपाध्याय या आचार्य उपदेश मुद्रामें विराजमान हैं । भगवान् के सिरपर पाँच फणावलियाँ हैं । इनके ऊपर तीन छत्र सुशोभित हैं । सर्प - कुण्डली पीठको घेरे हुए है । कुण्डली और फणावली अत्यन्त भव्य जान पड़ती हैं। मूर्तिके शिरोभागपर दोनों ओर हाथों में पारिजात पुष्पमालाएँ लिये हुए आकाशचारी गन्धर्व युगल दीख पड़ते हैं ।
(२) एक पाषाणफलक में पद्मप्रभु भगवान्की सवा तीन फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा है । चरण चौकीपर मूर्तिलेख है । दोनों ओर चमरेन्द्र हैं । भगवान् के सिरपर छत्र है । ऊपर दोनों कोनों पर पुष्प विकीर्ण करते हुए आकाशगामी गन्धर्व दीख पड़ते हैं ।
(३) सवा दो फुट अवगाहनावाले शिलाफलक में पार्श्वनाथ तीर्थंकरकी खड्गासन मूर्ति है । यह मूर्ति वैसी ही है जैसी कि मूर्ति नं. १ है । अन्तर केवल अधोभागमें है । इसमें पादपीठके नीचे बायीं ओर भक्त स्त्री-पुरुष बद्धांजलि बैठे हुए हैं तथा एक नागपुरुष दण्ड लिये हुए खड़ा है। दायीं ओर एक नागपुरुष हाथ जोड़े हुए खड़ा है ।
(४) एक शिलाफलक में सवा दो फुट अवगाहनावाली श्याम वर्णं पार्श्वनाथकी खड्गासन मूर्ति है । पादपीठपर सर्पलांछन है । मूर्तिके दोनों बाजुओंमें चमरेन्द्र खड़े हैं । उनके ऊपर बायीं ओर चार उपाध्याय मूर्तियाँ हैं तथा दायीं ओर तीन उपाध्याय मूर्तियाँ और एक कीचक है । भगवान् के सिरपर सप्त फणावलियाँ सुशोभित हैं । फलकके शिरोभागपर दोनों कोनोंमें केवल हाथ दिखाई पड़ते हैं । बायीं ओरके हाथों में दुन्दुभि है तथा दायीं ओर के हाथोंमें झाँझ है ।
भाग २- २३