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________________ १७६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यहाँ पाषाणकी केवल चार जैन तीर्थंकर मूर्तियाँ देखनेमें आयीं। (१) एक सवा तीन फुटके शिलाफलकमें चौबीस तीर्थंकरोंकी कायोत्सर्गासनमें प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। मध्यमें चन्द्रप्रभ तीर्थंकर पद्मासनमें विराजमान हैं। यह प्रतिमा ९वीं शताब्दीकी है। (२) पार्श्वनाथको कुछ हलके-भूरे-लाल पाषाणकी यह प्रतिमा तीन फुट ग्यारह इंचकी है। यह पद्मासनमें विराजमान है। यह प्रतिमा गुप्तयुगमें ५वीं शताब्दीकी स्वीकार की गयी है। ध्यानस्थ पार्श्वनाथके ऊपर संवर देव द्वारा किये गये उपसर्गका दृश्य अंकित है। (३) एक तीर्थंकर प्रतिमा, जिसकी चरण-चौकी पर कोई लांछन और लेख नहीं है। अतः यह निश्चित नहीं हो सका है कि यह किस तीर्थंकरकी प्रतिमा है। इसकी अवगाहना साढ़े चार फुट है तथा पद्मासनमें स्थित है। इसका काल ९-१०वीं शताब्दी प्रतीत होता है। १) एक पाषाण फलकमें भगवान् महावीरकी माता त्रिशला लेटी हुई हैं और तीर्थकरके गर्भावतरणके सूचक १६ स्वप्न देखती हुई सुख निद्राका आनन्द ले रही हैं । फलकमें सोलह स्वप्न अंकित हैं। यह मूर्ति गुप्त शैलीमें ईसाकी पांचवीं शताब्दीकी अनुमानित की जाती है। यह मूर्ति महास्थान ( बँगला देश ) से उपलब्ध हुई थी। कुछ लोग भ्रमवश इसे मायादेवीके स्वप्नदर्शनकी मूर्ति मानते हैं। किन्तु वस्तुतः है यह त्रिशलाका स्वप्न-दर्शन। इसी प्रकार धातुकी ५ जैन प्रतिमाएँ देखनेमें आयीं। इनमें दो पद्मासन हैं और शेष तीन खड्गासन हैं। पांचों हो प्रतिमाएँ जैन तीर्थकरोंकी हैं और प्रायः १०वीं शताब्दीकी हैं। इनमें १ प्रतिमा मध्य प्रदेशसे, ३ उड़ीसासे तथा १ प्रतिमा बंगालसे उपलब्ध हुई है।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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