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कलकत्ता
कलकत्ताका इतिहास
कलकत्ता भारतका सबसे बड़ा शहर है। इसकी गणना संसारके विशालतम शहरों में की जाती । जहाँ आज यह शहर आबाद है, वहाँ आजसे लगभग ३०० वर्ष पहले भयानक जंगल था, जहाँ जहरीले साँप, 'रायल बंगाल टाइगर' और दुर्दान्त डाकू रहते थे । पहले यहाँ जंगलों और दलदली जमीनमें थोड़ी-थोड़ी दूरपर कुछ गाँव बसे हु थे । सम्राट् अकबरके कालमें यह सप्तग्राम जिले के अन्तर्गत था । सप्तग्राम अर्थात् आधुनिक हुगली ही उस समय व्यापारका मुख्य केन्द्र था । यह शहर सरस्वती नदी के किनारे बसा हुआ था । पुर्तगाली, स्पेनी, डच, फ्रांसीसी और अँगरेज व्यापारी यहीं अपना माल बेचते और यहाँसे माल खरीदते थे । किन्तु यह शहर समुद्रसे दूर था । सरस्वती नदी भी सूख जाती थी । इसलिए बड़ी नावें और जहाज यहाँ आसानीसे नहीं पहुँच पाती थीं । अतः उन्हें यह जरूरत अनुभव हो रही थी कि कोई ऐसा स्थान व्यापारिक केन्द्र बने, जो समुद्र के निकट हो। इस प्रकार सप्तग्रामसे व्यापारका बाजार हटकर सूतानटी, गोविन्दपुर और कालिका क्षेत्रमें आ गया । विदेशी व्यापारियोंके साथ व्यवसाय करनेवाले मुख्यतः वैसाख और सेठ थे । वे भी सप्तग्रामसे हटकर सूतानटी और गोविन्दपुरमें आकर बस गये । सुतानटी इन सबमें सम्पन्न था । यहाँ मुख्यतः कपड़े और सूतका व्यापार होता था । सूतानटीका अर्थ ही सूतका ause है । बैसाख और सेठोंने यहीं अपनी आढ़तें खोल लीं । यह सूतानटी आजकल कलकत्तेका बड़ा बाजार और बाग बाजार है, गोविन्दपुर आजका डलहौजी स्क्वायर, हेस्टिंग्स और फोर्टविलियम है तथा कालिका क्षेत्र आजका कालीघाट, भवानीपुर है । इन तीनों बड़े-बड़े ग्रामोंको मिलाकर जाव चारनाक नामक अँगरेजने आधुनिक कलकत्ता शहरकी नींव रखी। सम्भवतः उसने कभी यह कल्पना भी न की होगी कि जंगलों और दलदलोंसे घिरा हुआ यह क्षेत्र कभी संसारके आधुनिक बड़े शहरों में गिना जायेगा । इसके साथ यह भी सत्य है कि संसारका कोई अन्य शहर इतने अल्प कालमें इतना अधिक विकसित नहीं हुआ । जंगलों और दलदलोंसे विकसित होकर यह तीन शताब्दियोंके अल्पकालमें आधुनिक सुविधा सम्पन्न नगर बना, इसलिए इसके पीछे कोई विशेष सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि नहीं है ।
इसके बादका इतिहास अंगरेजोंकी मक्कारी और कूटनीतिकी काली स्याही से लिखा गया । सन् १७५७ में मीरजाफरकी गद्दारीके कारण प्लासी के मैदानमें नवाब सिराजुद्दौलाकी सेना पराजित हो गयी । मीरजाफरके लड़के मीरनने नवाबको कत्ल कर दिया । अँगरेजोंने मीरजाफरको बिहार-बंगाल - उड़ीसा का नवाब बना दिया और सन्धि करके उससे अनेक प्रकारकी व्यापारिक सहूलियतें प्राप्त कर लीं। इसके साथ ही हर्जाने के रूपमें खूब धन वसूल किया। सन् १७५७ में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनीने क्लाइवको बंगाल स्थित अँगरेजी राज्यका प्रथम गवर्नर नियुक्त किया । सन् १७६७ में अँगरेजोंने दिल्लीके मुगल सम्राट्से बिहार - बंगाल - उड़ीसा की मालगुजारी वसूल करने - का अधिकार प्राप्त कर लिया। तब अँगरेजोंने जनताको बुरी तरह लूटना प्रारम्भ कर दिया ।