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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१४३ इस संग्रहालयमें कुछ जैन कला वस्तुएँ भी हैं। उनमें ७३ पाषाणकी और ४ धातुकी मूर्तियाँ हैं तथा सचित्र हस्तलिखित शास्त्र हैं । मूर्तियोंका विवरण इस प्रकार है
१. भगवान् चन्द्रप्रभकी पद्मासन पाषाण प्रतिमा। आकार दस इंच। संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित ।
- २. पंच बालयतिकी धातु प्रतिमा। मध्यमें स्वस्तिक है तथा एक पद्मासन प्रतिमा है। नीचेके भागमें दो खड्गासन तथा ऊपरके भागमें दो पद्मासन प्रतिमा हैं । खड्गासन मूर्तियोंके इधरउधर चमरवाहक हैं । ऊपरकी ओर दो हाथी, छत्र, शिखर, दो सिंह, यक्ष-यक्षी हैं। यह संवत् १५२० में प्रतिष्ठित हुई है।
३. आसनसहित सात अंगुलकी धातु प्रतिमा पद्मासनमें । ऊपर छत्र नीचे यक्ष-यक्षी।
४. आसन सहित छह अंगुलकी धातुकी पार्श्वनाथ प्रतिमा । नीचे दो पद्मासन प्रतिमाएँ हैं । मुख घिसा हुआ है । इसके परिकरमें दो चमरवाहक, ऊपर दो दुन्दुभि वादक, दो गज और तीन छत्र हैं।
५. पंच बालयतिकी धातु प्रतिमा । मध्यमें एक तीर्थंकर प्रतिमा पद्मासनमें । ऊपरके भागमें दो पद्मासन और नीचे के भागमें दो खड्गासन प्रतिमाएँ हैं। - ६. एक पाषाण-फलकमें सामनेके भागमें १९ मूर्तियाँ हैं। दायीं ओर की चौड़ाईमें ८ प्रतिमाएँ हैं। फलक खण्डित है। ____७. एक पाषाण फलकमें ६४ पद्मासन प्रतिमाएँ चार पंक्तियोंमें विराजमान हैं।
हस्तलिखित ग्रन्थोंमें जिननामचरितम्, कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथानक ग्रन्थ हैं। ये कुल ७ ग्रन्थ हैं और सभी १५वीं शताब्दीके लिखे हुए हैं। अधिकांशतः ये ग्रन्थ स्वर्णाक्षरोंमें लिखित हैं। सभी ग्रन्थ सचित्र हैं। चित्र प्राचीन पद्धतिके हैं । लेखनको शैली अत्यन्त कलापूर्ण है। (३) कानोडिया संग्रहालय
यह संग्रहालय श्रीगोपीकृष्ण कानोडियाका व्यक्तिगत है । यह फ्रेजर रोड स्थित उदय भवनमें अवस्थित है । श्रीकानोडिया सम्पन्न व्यक्ति हैं, उन्हें कला सामग्रीके संग्रह करनेका शौक है। अपनी रुचिके अनुसार उन्होंने संग्रह भी किया है, किन्तु वे भीरु स्वभावके व्यक्ति हैं। अतः संग्रह किसीको दिखानेमें उन्हें भय लगता है।
उनकी कृपासे हमें पार्श्वनाथ तीर्थकरकी एक प्राचीन कलापूर्ण प्रतिमाको देखनेका अवसर मिला। यह प्रतिमा एक टिन शैडमें रखी हुई है। यह भूरे पाषाणकी प्रतिमा कायोत्सर्गासनमें साढ़े पाँच फुट ऊँची है। इसके सिर पर सप्त फणावलि सुशोभित है। चरणोंके दोनों पाश्ॉमें एकएक पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति विराजमान है। उनसे ऊपर दोनों ओर चमरेन्द्र चमर लिये हुए खड़े हैं । एक ओरका चमरेन्द्र तो बिलकुल नहीं रहा तथा दूसरा भी छातीके ऊपरी भागसे खण्डित है। बायीं मूर्तिके ऊपर पाषाण फलकका भाग बिलकुल भग्न हो गया है।
इस भव्य मूर्तिका निर्माण-काल ईसाकी तृतीय शताब्दी है ।