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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस सम्बन्धमें 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थमें निम्नलिखित सूचना उपलब्ध होती है फग्गुण किण्हे सट्ठी पुव्वण्हे सवणभे य णीलवणे । मुणिसुव्वयस्स जादं असहायपरक्कम णाणं ॥४।६९७ अर्थात् मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरको फाल्गुन कृष्णा षष्ठीके पूर्वाह्नमें श्रवण नक्षत्रके रहते नीलवनमें असहाय पराक्रमरूप केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। देवों और इन्द्रोंने तब आकर भगवान्के ज्ञानकी पूजा की और केवलज्ञान कल्याणकका उत्सव किया। इस प्रकार राजगृहमें भगवान् मुनिसुव्रतनाथके चार कल्याणक मनाये गये । सिद्धक्षेत्र यह क्षेत्र सिद्धक्षेत्र या निर्वाणक्षेत्र भी है। यहाँके पाँच पहाड़ोंसे अनेक मुनियोंने मुक्ति प्राप्त की है। अतः सिद्धक्षेत्रोंमें इसकी भी गणना की जाती है। आचार्य पूज्यपादने 'निर्वाण भक्ति' में इस सम्बन्धमें स्पष्ट उल्लेख किया है जो इस प्रकार है 'द्रोणीमति प्रवलकुण्डलमेढ़के च, वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । ऋष्यद्रिके च विपुलाद्रिवलाहके च, विन्ध्ये च पोदनपुरे वृषदीपके च ॥ १९ सह्याचले च हिमवत्यपि सुप्रतिष्ठे, दण्डात्मके गजपथे पृथुसारयष्टौ । ये साधवो हतमलाः सुगति प्रयाताः, स्थानानि तानि जगति प्रथितान्यभूवन् ।। ३० ये सब निर्वाण भूमियोंके नाम हैं जहाँसे कर्ममल नष्ट करके साधुओंने सुगति (मुक्ति) प्राप्त की है। इन निर्वाण भूमियोंमें राजगृहीके पाँच पर्वतोंमें वैभार, ऋषिगिरि, विपुलगिरि और बलाहक भी गिने गये हैं। पाँच पर्वतोंके नामोंमें मत-वैविध्य रहा है। इसलिए आचार्य पूज्यपादने राजगृह नाम न देकर पर्वतोंके नाम दिये हैं। इससे लगता है कि उनके समयमें ये ही नाम प्रचलित रहे होंगे। ये पर्वत सिद्धक्षेत्र रहे हैं जहाँसे अनेक मुनियोंने सिद्धपद प्राप्त किया। यहाँ ऐसे कुछ मुनियोंसे सम्बन्धित घटनाओंका उल्लेख करना उचित प्रतीत होता है (१) एक बार हेमांगद देशमें राजपुर नगरके शहर सुरमलय उद्यानमें भगवान् महावीर पधारे । राजपुरनरेश जीवन्धरकुमार भगवान्का आगमन सुनकर बड़ा हर्षित हुआ। वह भगवान्का दर्शन करनेके लिए उद्यानमें पहुंचा और उनका उपदेश सुनकर उसके मनमें वैराग्यकी भावना जागृत हो गयी। वह समवसरणसे राजमहल पहुँचा और महारानी गन्धर्वदत्ताके पुत्र वसुन्धरकुमारको विधिपूर्वक राज्य सौंप दिया। फिर सबसे अनुमति लेकर जीवन्धर नरेशने नन्दाढ्य आदि भाइयों और सम्बन्धियोंके साथ परिग्रहका त्याग करके मुनि-दीक्षा ले ली। जीवन्धर महाराजकी माता और स्वर्गीय सत्यन्धर महाराजकी महादेवी विजया तथा अन्य रानियोंने चन्दना आर्या के समीप उत्कृष्ट संयम धारण कर लिया। ___कालक्रमसे महावीर प्रभु विहार करते हुए राजगृह पधारे। मुनि जीवन्धर भी भगवान्के संघके साथ थे। इस समय वे श्रुतकेवली थे। उन्होंने घोर तप किया और चार घातिया कर्मोंका नाश करके केवलज्ञान प्राप्त किया। कुछ समय तक उन्होंने भगवान्के साथ विहार किया। जब भगवान् महावीर पावामें पहुँचे और वहाँ योग निरोध कर निर्वाण प्राप्त किया, उस समय केवली जीवन्धर स्वामी राजगृहके विपुलाचलपर विराजमान थे। उन्होंने वहींपर योग
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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