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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ इन्द्र की आज्ञासे कुबेरने समवसरणकी रचना की। भगवान्ने वहाँ लोककल्याणकारी उपदेश दिया। उस समय गजपुर ( हस्तिनापुर ) का स्वामी स्वयम्भू भी भगवान्के समवसरणमें उपस्थित था। उसने वहीं भगवान्को प्रणाम करके दीक्षा ले ली। वह भगवान्का प्रथम गणधर बना। उसकी कन्या प्रभावतीने आर्यिका दीक्षा ले ली। वह मुख्य गणिनी बनी। तापस महीपालके सात सौ तापस शिष्य भी भगवान्के शिष्य बन गये।
प्रभुका उपदेश सुनकर संवर असुरने जिनेन्द्रके चरणोंमें नमस्कार कर अपने अपराधोंकी क्षमा याचना की और अनेक जन्मोंसे चले आ रहे वैर और क्रोधके संस्कारोंका परित्याग किया।
__ प्रभु विहार करते हुए शौरीपुर पधारे। उस समय वहाँका राजा प्रभंजन था। वह भगवान्का भक्त बन गया। वहाँसे विहार करते हुए वे वाराणसी पधारे। वहाँ महाराज अश्वसेन और महारानी वामा देवीने दीक्षा ग्रहण की। अन्तमें भगवान् सौ वर्षकी अवस्थामें सम्मेदशिखरसे निर्वाणको प्राप्त हुए।
भगवान् पार्श्वनाथका विहार अंग, बंग, कलिंग, मध्यदेश, मगध आदि प्रदेशोंमें अधिक हुआ। इन प्रदेशोंकी जनता आपके धर्मकी अनुयायी बन गयी। इन प्रदेशोंमें आपके अनुयायियोंकी संख्या लाखों-करोड़ोंमें थी। आज भी इन प्रदेशोंमें भगवान् पार्श्वनाथको अपना कुलदेवता माननेवाले सराकोंकी विपुल संख्या है। भूगर्भसे आजतक जितनी जैन मूर्तियाँ निकली हैं, उनमें पार्श्वनाथकी मूर्तियाँ सर्वाधिक मिलती हैं। सम्मेदशिखर तीर्थराज है, जहाँसे बीस तीर्थंकरों और असंख्य मुनियोंने निर्वाण प्राप्त किया है। किन्तु लोकमें उस स्थानका नाम 'पारसनाथ हिल' के रूपमें विख्यात है । इन सबसे यह ज्ञात होता है कि लोकमानसपर पार्श्वनाथका प्रभाव असाधारण रहा है।
वाराणसीसे ६ कि. मी. दूर सिंहपुरी क्षेत्र है। यह स्थान पहले वाराणसीका ही भाग रहा है । यहाँ ग्यारहवें तीर्थंकर भगवान् श्रेयान्सनाथके गर्भ, जन्म, दीक्षा और ज्ञानकल्याणक हुए थे। तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थमें इस सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख मिलता है
सीहपुरे सेयंसो विण्हु गरिदेण वेणुदेवीए।
एक्कारसिए फग्गुण सिद पक्खे समणभेजादो ॥४।५३६।। अर्थात् भगवान् श्रेयान्सनाथ सिंहपुरीमें पिता विष्णु नरेन्द्र और माता वेणुदेवीसे फाल्गुन कृष्णा एकादशीके दिन श्रवण नक्षत्रमें उत्पन्न हुए।
वाराणसीसे मोटर और रेल द्वारा प्रायः २२ कि. मी. दूर चन्द्रपुरी क्षेत्र है। सिंहपुरीसे यह स्थान लगभग दस मील है। यहाँ आठवें तीर्थंकर भगवान् चन्द्रप्रभका जन्म हुआ था। इस सम्बन्धमें तिलोयपण्णत्तिमें निम्नलिखित कथन मिलता है
चन्दपहो चन्दपुरे जादो महसेण लाच्छेमइ आहिं । --- पुस्सस्स किण्ह. एयारसिए अणुराह णक्खत्ते ॥४।५३३।। अर्थात् चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र चन्द्रपुरीमें पिता महासेन और माता लक्ष्मणासे पौष कृष्णा एकादशीको अनुराधा नक्षत्रमें उत्पन्न हुए। ...
आचार्य गुणभद्रने उत्तरपुराणमें चन्द्रप्रभ भगवान्के दीक्षाकल्याणकके सम्बन्धमें लिखा है
१. बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तुति ।