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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
*डौं धर्मोपदेशसारे सममामिलामीवितिनिगजमानाय क्लींमहावीजाक्षरसहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय प्रय॑म् ।। ३७।।
The glory, which Thou attained at the time or giving instruction in religious matters, is attained, Jinendra! by nobody else. How can the lustre of the shininig planets and stars be so (bright) as the darkness-destroying cffulgence of the sup? 37.
हस्तिमवर्भयक तथा वैभषक श्च्योतन्मदाविल • विलोल - कपोलमूल
मसभ्रमभ्रमर - नाब - विबुद्ध - कोपम् । ऐरावतामिभमुद्धत - मापतन्तं
दृष्ट्वा भयं भवति नोभवदाश्रितानाम् ।३। मत्तोऽपि हस्ती मदलीलया च,
नायाति नाम्ना निवसन्मुखे हि संसारपाथोनिधितारकस्य,
देवाधिदेवस्य जिनस्य कर्तुः ॥३८॥ लोल कपोलों से झरती है, जहाँ निरन्तर मद की धार । होकर अति मदमत्त कि जिस पर, करते हैं भौंरे गुंजार ॥ क्रोधासक्त हुआ यों हाथी, उद्धत ऐरावत सा काल । देख भक्त छुटकारा पाते, पाकर तब प्राश्रय तत्काल ।।३।।
(ऋसि) ॐ ह्रीं मई णमो मणवलीणं ।
( मंत्र ) ॐ नमो भगवते महानागकुलोच्चाटिनी कालदष्टमृतकोपस्थापिनी परमंत्रप्रणाशिनो देवि-शासन ही नमो नमः स्वाहा ।