________________
थी भक्तामर महामण्डल पूजा
(विधि) श्रद्धासहित ऋद्धि-मंत्र का प्राराधन करने से हस्ति का मद नष्ट होता है और मर्यप्राप्ति होती है ।।३८॥
मर्ष-हे अभयप्रद ! जो प्राणी प्रापकी शरण लेते हैं। वे मरोन्मत्त, उच्छल, प्राक्रमणकारी और प्रवश हापी को बेल कर भी भयभीत नहीं होते ॥३८॥ ॐ ह्रीं हस्त्यादिगदुद्धरभयनिवारणाय क्लींमहावीजाक्षर
सहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय अयम् ||३८|| Those, who have resorted to You are not afraid even at the sight of the Airavata-like infuriated elephant, whose anger has been incr-ased by the buzzing sound of the intoxicated bees hovering about its checks soiled with the flowing rut, and which rushes forward. 38.
सिंहशक्ति-संहारक भिनेभकुम्भ - गलदुज्ज्वल -शोरिंगतात
मुक्ताफल - प्रकर - भूषित - भूमिभागः । बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि,
नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥३६॥ उत्तुङ्ग-पुच्छेन विराजमानः,
आरक्तनेत्रैः रदनै विशिष्टः। को केशरी देव ! सुनाममात्रात्,
___करोति क्रीडां तु विडालवत्सः ||३६॥ क्षत-विक्षत कर दिये गजों के, जिसने उन्नत गण्डस्थल । कांतिमान् गज-मुक्ताओं से, पाट दिया हो अवनी-तल ।।