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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
(विधि) श्रद्धापूर्वक चार कंकरी १०८ बार मंत्र कर चारों दिशाओं में फेंकने से पत्र कोलित हो जाता है तथा सप्तभय भाग जाते हैं। भावार्थ - हे जिनेश ! आपके निर्दोष स्तवनमें तो भविन्स्य शक्ति है ही, परन्तु आपकी पवित्र कयाका सुनना ही प्राणियों के पापों को नष्ट कर देता है। असे सूर्य तो दूर ही रहता है, परन्तु उसकी उक्ज्वल किरण ही सरोवरों में कमलों को विकसित कर देती हैं || १ |
ॐ ह्रीं सकलमनोवांछित फलदात्रे क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्यम् ||६||
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Let alone Thy eulog, which destryoys all blemishes; even the mere mention of Thy name destroys the sins of the world. After all the sun is far away, still his more light makes the lotuses bloom in the the tanks. 9
कुकरविवनिवारक
नात्यद्भ ुतं भुवन भूषरण ! भूतनाथ !
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भूर्त गुंग भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः ।
तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किम्बा,
भूत्याश्रितं य इह्नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ नहि विभोऽद्भूतमंत्रसमप्रभो, भवति यो भविनां भुवि भक्तिदः जिनवरार्चनतोऽर्चनताचितं फलमिदं भविता कथितं जिनैः त्रिभुवनतिलक जगपति है प्रभु ! सद्गुरुत्रों के हे गुरुवर्य्यं । सद्भक्तों को निजसम करते, इसमें नहीं अधिक आश्चर्य ।। स्वाश्रित जन को निजसम करते, घनी लोग धन घरनी से । नहीं करें तो उन्हें लाभ क्या ? उन धनिकों की करनी से ||