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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा -..--. - - .... - . - . .-.- .... --- जलकुसुमसुगन्धे - रक्षतः दोपचूपैः । विविध - फल निवेद्य - रर्चयामोह देवम् ।। मुग्नरवरसेव्यं दोहदानां वरेशं । शिवसुखपदधामं प्राणिनां प्राणनाथम् ॥ ॐ ह्रीं अष्टदलकमलाधिपतये श्रीवृषभजिनेन्द्राय अध्यम् ।
अथ षोडश दलकमलपूजा
सप्तभयसंहारक प्रभौमितफलदायक भात सब स्वामशात्महतो,
स्वस्सङ कथापि जगतो दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभव,
पपाकरेषु जलजानि विकास जि ।।। तव गुणावलिगानविधायिनो, भवति दूरतरं दुरितास्पदं । तव कथापिशिवाढयविधायिका, कुरुजिनार्चनकं शुभदायक दूर रहे स्तोत्र मापका, जो कि सर्वथा है निदोष । पुण्य-कथा ही किन्तु आपको, हर लेती है कल्मष-कोष ।। प्रभा प्रफुल्लित करती रहती, सर के कमलों को भरपूर । फेंका करता सूर्य-किरण को, पाप रहा करता है दूर ।।९।।
(ऋद्धि) ॐ ह्री प्रहं णमो अरिहंताणं, णमो संभिणसोदाराएं हो ह्रीं है. फट् स्वाहा ।
(मंत्र) ॐ ह्रीं श्रीं कोसी वी र: र: हं हा नमः स्वाहा ।