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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
ॐ ह्रीं सकलकार्यसिद्धिकराय क्लींमहादीमाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय श्रीवृषभजिनाय अध्यम् ।।५।। Though devoid of power yet urged by devotion, O Great Sage, I am deterniined to culogise you. Does tot a detr, not taking into account its own might, face a lion to protect its young-one out of affection: 5.
सरस्वती-भगवती-विद्या प्रसार अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम,
त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधो मधुरं दिरोति,
तच्चान्न - चार - कलिका - निकरकहेतुः ॥६॥ ये सन्ति शास्त्रसबला प्रहसन्ति ते मां,
भक्त्या तथापि जिन भक्तिवशात् करोमि । पूजाविधि जिनपतेः सुरचित्तचौर,
स्वर्गापवर्गसुखदं परमं गुणोधम् ॥६॥ प्रल्पश्रुत हूँ श्रुतबानों से, हास्य कराने का ही धाम । करती है बाचाल मुझे प्रमु, भक्ति प्रापकी पाठों याम ।। करतो मधुर गान पिक मधु में, जगजन मनहर प्रति अभिराम | उसमें हेतु सरस फल फूलों, के युत हरे - भरे तरु - माम ॥६॥
(ऋद्धि) ॐ ह्रीं मह णमो कोडुबुखोग ।
(मंत्र ) * ह्रीं श्रीं श्रीं यूं कई सं या बरषः ठः ॐ सरस्वती भगवती विद्याप्रसादं कुरु २ स्वाहा ।