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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
------ चन्द्रस्य कान्तिसदृशान् परमान् गुणौघान्,
कोऽसा पुमान् तव विभो : कथितुं समर्थः । तस्माद् विधाय जिनपूजनमेव कार्यम् ।
मुक्ति व्रजामि वरभक्ति - जबात् देव ! ॥४॥ हेजिन ! चंद्रकान्त से बढ़कर, तव गुण विपुल अमलप्रतिश्वेत ! कह न सकें नर हे गुण-सागर, सुर-गुरु के सम बुद्धिसमेत ॥ मक-नक्र-चक्रादि जन्तु युत, प्रलय पवन से बढ़ा अपार । कौन भजामों से समुद्र के, हो सकता है परले पार ।।४।।
(ऋद्धि) ॐ ह्रीं मह णमो सब्बोहिजिरगाणं ।। ( मंत्र ) * ह्रीं श्रीं क्लीं जलयात्रादेवताम्यो नमः स्वाहा ।
(विधि) सात दिन तक प्रतिदिन १००० बार श्रद्धापूर्वक ऋद्धिमंत्र जपने तथा २१ कंकरियों को कमशः एफ २ कंकरी को उक्त मंत्र से मंत्रित कर अल में डालने से जाल में मछलियाँ नहीं फंसती ॥४॥
अर्थ-हे गुणनिधे । जिस सरह प्रलयकाल की प्रचण्ड वायु से कुपित और लहराते हुये हिंसक मगरमच्छों से परिपूर्ण समुद्र को कोई भुजामों से नहीं तर सकता: उसी प्रकार बृहस्पति के समान बुद्धिमान पुरुष भी मापके निर्मल गुणों का पर्णम नहीं कर सकता, फिर मुझ पल्पज्ञ की तो बात हो क्या है ? ॥४॥ ॐ ह्रीं नानादुःखसमुद्रतारणाय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय धीवृषभजिनाय प्रय॑म् ।।४॥ Lore thou art the very occean of virtues who though vying in wisdom with the preceptor of the gods, can describe thine excellencey spotless like the moon? Whoever can cross with hands the ocean, full of alligators lashed to fury by the winds of the Doomsday. 4