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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
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स्तुति को तय्यार हुअा हूँ, मैं निर्वृद्धि छोड़ के लाज । विज्ञजनों से अचित हे प्रभु, मंदबुद्धि की रखना लाज ।। जल में पड़े चन्द्र-मंडल को. वाला विना कीन पतिमान । सहसा उसे पकड़ने वाली, प्रबलेच्छा करता गतिमान ॥३।। (ऋद्धि) ॐ ह्रीं अह ए मो परमोहिजिणाणं । ( मंत्र) ॐ ह्रीं श्रीं फ्ली सिदेभ्यो बुद्धेभ्यः सर्वसिद्धदायकेभ्यो नमः
स्वाहा । (विधि) श्रद्धापूर्वक सात दिन तक प्रतिदिन त्रिकास १०८ बार
ऋद्धिमंत्र जपने से सर्वसिद्धियां प्राप्त होती हैं ॥३॥
अर्थ-हे देवों द्वारा पूजनीय जिनेन्द्र ! विशेष सुखि के न होने पर भी जो मैं पापकी स्तुति करने में तत्पर हो रहा हूँ, यह मेरी बौठता ही है, क्योंकि मेरा यह प्रयन पानी में प्रतिविम्बित चन्द्र प्रतिविम्ब को बड़े बाप से पकड़ने वाले बालक की भांति ही है ॥३॥ ॐ ह्रीं मस्पादिसुशानप्रकाशनाय क्लींमहावीजाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय श्रीवृषभजिनाय मयम् ॥३॥ Shameless I am. O Lord, as 1, though devoid of wisdon, have decided to eulogise you, whose feet have been worshipped by the gods. Who, but an infant, sud. deply wishes to grasp the disc of the moon reflected ja water ? 3.
जलजन्तु-मोषक वक्तुं गुणान् गुरगसमुन्द्र ! शशाङ्ककान्तान्,
कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्धधा। करूपान्त - कालपवनोद्धत - नक - चक्र.
को वा तरोतुमलमम्बुनिधि भुजाभ्याम् ॥४॥