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जिना ये प्रभूता भविष्यति ये च, तथा संति काले च संप्रत्यनंताः। त्रिकालोद्भवांस्तान् सदा नौमि भक्त्या.
त्रिकालस्य दोषस्य शुद्धय त्रिशुद्धया ॥२४॥ भूतकाल में अनंत जिनवर हये अभी जो होते हैं, तथा भविष्यत में अनंत तीर्थकर होंगे इस जग में। कालिक सब तीथंकरों की करू वंदना भक्ति से, कालिक दोषों की शुद्धि हेत नम् त्रयशुद्धि से ॥२४॥
सुनाभयनाथादि-वीरप्रभून् तान्, चतुर्विशति नौमि शिरसा त्रिसंध्यं । विदेहस्थविशा जिनास्तान् प्रवंदे,
जिनेन्द्रान् गणीन्द्रांश्च सर्वाश्च साधून ॥२५।। श्री जिनवृषभदेव से लेकर, अंतिम महावीर जिन सक, चौबीस तीर्थकरों का वंदन, करू त्रिकाल झुका मस्तक । विदेह क्षेत्रज विद्यमान सीमंधर प्रादि बीस जिनकी, करू वंदना त्रयकालिक सब जिनवर गणधर मुनिगण को ।।२५॥
महाधीरधीरं महावीरवीर, महालोकलोकं महाबोधबोध । महापूज्यपुज्यं महावार्यवीर्य,
महादेवदेवं महातं महामि ॥२६॥ महावीर जन में तुम उत्तम-धीर, महावीरों में वीर, सभी लोक को किया बिलोकन महाज्ञान में ज्ञानी वीर । महापूज्य गणधर से पूजित, महावीर्य युत में भी वीर, महादेव के देव तुम्हीं हो महाश्रेष्ठ में नमू सुधीर ॥२६॥
सुकवल्यबोधर्जगद्व्याप्य विष्णुः, महामोह-जिष्णु विष्णुः सहिष्णुः। विनालंकृति श्रीतनुर्ब्रह्मचारी,
नमस्तेऽतिवीराय धर्मस्य भत्रे ॥२७॥ केवलज्ञान किरण से जग को व्यापा प्रतः विष्णु तुम ही, महामोह भट जिष्णु जग में, स्यात भविष्णु सहिष्णु भी। अलंकार से रहित सुशोभित, सुतनु बालब्रह्मचारी हो, 'हे अतिवीर ! धर्म के भर्ता, नमोऽस्तु तमको नित मम हो ॥२१॥
जगद्दोषह जगत्सौख्यकत्रे, सुमार्गस्य धात्रे सुमुक्तिप्रदात्र। जगत्तत्ववेत्रेऽष्टकर्मारिहंत्रे, शिवश्री सुभत्रे त्वजस्रं नमोऽस्तु ॥२७||