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( तोटक छेदः) मुनिवंदितपादसरोजयुमं, जनताहृदयाम्बुजभानुसम। जितमोहमहारिपुवीरजिनं
प्रणमामि सुरासुरवंद्यपदं ॥२०॥ मुनिगणवंदित चरण सरोरुह, भविजन हृदय कमल भास्कर। मोह महारिपु जीत बने तुम, वीर तुम्हें वंदन जिनपर! ।। सुर असुरादिक वंद्य श्रेष्ठपद पाया तुमने हे जिनराज। प्रणमन करूं सदा शिरनत कर, जन्म सफल है मेरा प्राज ।।२०।।
जय वीरजिनेश ! सदा जय भोः !, जिनशासनसूर्य ! मुदं कुरू की। कुमति हर भव्य जनस्य विभो !
जय वीर ! सदा जय वीरविभो ! ॥२१॥ जय जयवीर जिनेश्वर हे ! जय, सदा तुम्हारी जग में हो, हे जिनशासन सूर्य ! धरा पर, नित चमको नित हर्ष करो। भव्य जनों की कुमति निवारो, हे जिनवर ! सुमतिप्रद हो, जय हो जय हो बीर प्रभो ! जय वीर प्रभो ! महावीर प्रभो! ॥२१॥
जयताजिनशासन वृद्धिकरः, तनुतात् त्वरितं शिवसौख्यसुधां । कुरुतात् करुणां मयि दुःखगते,
धिनुतान् मम कर्मरज: कलिलं ॥२२॥ . जिनशासन वर्धन में शशिसम, त्रिभुवन में हो जयशील सदा,
भविजन मन पाल्हादनकारी, दीजे मम शिवसौख्य सुधा। हे शरणागत वत्सल ! मुझ दुःखितजन पर करुणा करिये, भव अनंत के संचित अब सब कर्म धूलि झटिति हरिये ॥२२॥
(भुजंगप्रयात)
महाशुक्लसद्ध्यानवैश्वानरेऽस्मिन्, प्रदग्धं समस्ताष्टकर्मारिकक्षम् । श्रितोऽनंतदरज्ञानवीयस्वसौख्यं,
स्तुवे केवलज्ञानभान जिनं तं ।।२३।। महाशुक्ल सद्ध्यान अग्नि में, अष्टकर्म बन भस्म किया, अनंत दर्शन ज्ञान वीर्य सुख-मय अनंत गुण प्राप्त किया। केवलज्ञान सूर्य ! हे भगवन् ! जगत चराचर देख लिया, त्रिभूवन स्वामी अंतर्यामी, नम भक्ति से खोल हिया ।।२३।।
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