________________
अहिंसा धर्म और धार्मिक निर्दयता
अब इस बात को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं रह गई है, कि प्रत्येक जीव को रक्षा करना मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। मनुष्य प्राधुनिक विज्ञान के द्वारा उन्नति करता हुआ अपने जीवन को जितना ही अधिक से अधिक सुखी बनाता जाता है, उतना ही पशु पक्षियों का भार रूका होतानासाहै। वैर..निक सेती ने बैलों और घोड़ों के हल चलाने के गृहत्तर कार्य को बहत हल्का कर दिया है। रेल, मोटरकार आदि वैज्ञानिक यानों में बोझ ढोने के कार्य से अनेक पशुओं को बचा लिया है। वज्ञानिक लोगों के शोध का कार्य अभी तक बराबर जारी है। उनको अपनी शोध के विषय में बड़ी-बड़ी आशाएं हैं। उनको विश्वास है कि एक दिन वे विज्ञान को इतना ऊंचा पहुंचा देंगे कि संसार का प्रत्येक कार्य विना हाथ लगाये केवल विजली का एक बटन दबाने से ही हो जाया करेगा। भोजन के विषय में उनको आशा है कि वह किसी ऐसे भोजन का आविष्कार कर सकेगे, जो अत्यन्त अल्प मात्रा में खाए जाने पर भी क्षुधा शान्ति के अतिरिक्त शरीर में पर्याप्त मात्रा में रक्त आदि धातुओं को भी उत्पन्न करेगा । तिस पर भी यह भोजन यन्त्रों द्वारा उत्पन्न बिल्कुल निरामिष होगा। इस प्रकार वैज्ञानिक लोग मनुष्य, पशु और पक्षी संभी के बोझ को कम करने के लिए बराबर यत्न कर रहे हैं।
यद्यपि हम भारतबासी यह दावा करते हैं कि संसार के सबसे बड़े धर्मों की जन्मभूमि भारतवर्ष है, किन्तु अत्यन्त दयावान जैन और बौद्ध धर्मों की जन्मभूमि होते हुए भी जीव रक्षा के लिये जो कुछ विदेशों में किया जा रहा है, भारत में अभी उसकी छाया भी देखने को नहीं मिलती। हम समझते हैं कि विदेशी लोग म्लेच्छ खण्ड के निवासी एवं मांसभक्षी होने के कारण
टिन्नेवेली जिले के कई स्थानों में पृथ्वी पर तेज नोक पाले भाले या बड़े कीले सीधे गाड़कर उनके उपर बड़ी भारी ऊंचाई से कई सूपर एक-एक करके इस प्रकार फेंके जाते हैं कि उसमें बिंधकर भाले के नीचे पहुंच जावें। इस प्रकार एक-एक भाले में एक के ऊपर कई एक सूअर जीवित ही बिध जाते है। बाद में उन मूक प्राणियों की बलि दी जाती है।
nuTIATRE
M
.
CHR..
हिसाप्रिय होते हैं, किन्तु तथ्य इसके विल्कूल विपरीत है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यूरोप और अमेरिका के अधिकांश निवासी मांसभक्षी हैं, किन्तु वे पशुमों के प्रति इतने निर्दय नहीं है। आप उनकी इस मनोवृत्ति पर पाश्चर्य कर सकते हैं, क्योंकि प्राणघात
८६