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ज-वर्ग को विशेषता महामहोपाध्याय सत्यसम्प्रदाचार्य श्री स्वामी राममित्र जी शास्त्री प्रोफेसर संस्कृत कालेज बनारस जनमत तब से प्रचलित हआ है जव से संसार में सृष्टि का प्रारम्भ हुया। जैन दर्शन वेदान्त आदि दर्शनों से पूर्व का है। जैन धर्म का स्याद्वादी किला है जिसके अन्दर वादी-प्रतिवादियों के मायामयी गोले नहीं प्रवेश कर सकते । बड़े-बड़े नामी प्राचार्यों ने जो जैन मत का खण्डन किया है वह ऐसा है जिसे, सुनकर हँसी पाती है।
-सम्पूर्ण लेख जैनधर्म महत्व भाग १, पृ० १५३-१६५
महामहोपाध्याय डा० श्री सतीशचन्द्र भूषण प्रिन्सिपल गवर्नमेंट संस्कृत कालेज कलकत्ता भगवान वर्वमान महावीर ने भारतवर्ष में प्रात्मसंयम के सिद्धान्त का प्रचार किया। प्राकृत भाषा अपने सम्पर्ण मध. मय सौन्दर्य को लिये हुए जैनियों को रचना में ही प्रगट हुई है।
जैन साध एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करते हुए पूर्ण रीति से बत, नियम और इंद्रिय संयम का पालन करता हआ जगत के सन्मुख पात्म संयम का एक बड़ा ही आदर्श प्रस्तुत करता है।
-जैनधर्म पर लोक० तिलक और प्रसिद्ध विद्वानों का अभिमत पृ० १२
वैदिक काल में जैन धर्म श्री स्वामी विरुपाक्ष वडियर धर्ममूवण, पण्डित बेवतीर्थ, विद्यानिधि एम० ए० प्रो. संस्कृत कालिज इन्दौर ईर्षा, द्वेष के कारण धर्म प्रचार को रोकने वाली विपत्ति के रहते हुए जैन शासन कभी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी ही होता रहा है। इस प्रकार जिसका वर्णन है वह 'अहंत देव' साक्षात् परमेश्वर (विष्णु) स्वरूप हैं। इसके प्रमाण भी शार्यपत्थों में पाये जाते हैं। उपरोक्त प्रहंत परमेश्वर का वर्णन वेदों में भी पाया जाता है। हिन्दुओं के पूज्य वेद और पुराण साहित्यों में स्थान-स्थान पर तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है, तो कोई कारण नहीं कि हम वैदिक काल में जैन धर्म का अस्तित्व न माने।
पीछे से जब ब्राह्मण लोगों ने यज्ञादि में बलिदान कर 'मा हिस्यात् सर्वभूतानि बाले वेद-वाक्य पर हरताल फेर टी उस समय जैनियों ने हिंसामय यज्ञ, यागादि का उञ्छेद करना प्रारम्भ किया था बस, तभी से ब्राह्मणों के चित्त में जनों के प्रति देष बढ़ने लगा, परन्तु फिर भी भागवतादि महापुराणों में ऋषभदेव के विषय में गौरव युक्त उल्लेख मिल रहा है।
-जैन धर्म पर लो० तिलक और प्रसिद्ध विद्वानों का अभिमत पृ० १७ परमहंस श्री बर्द्धमान महावीर
महात्मा श्री शिववतलाल जी वर्मन, एम० ए० हिन्दयो ! जैनी हम से जुदा नहीं है हमारे ही गोस्त पोस्त हैं। उन नादानों की बातों को न सुनो जो गलती से मावाफियत से, या तास्सूव से कहते हैं 'हाथी के पांव तले दब जामो मगर जैन मन्दिर के अन्दर अपनी हिफाजत न करो' रस तास्सब और तगादला का कोई ठिकाना है। हिन्दू धर्म तास्सुब का हामी नहीं है तो फिर इनसे दी
. इनके किसी ख्याल से तुम्हें माफकत नहीं हैं तो सही, कोन सब बातों में किसी से मिलता है? तम न के कहे सने पर न जामो। जैन धर्म तो एक अपार समुद्र है जिसमें इन्सानी हमदर्दी की लहरें जोर शोरजी की श्रुति 'अहिंसा परमो धर्मः' यहां ही असली सूरत अख्तयार करली हुई नजर आती है।
श्री महावीर स्वामी दुनिया के जबरदस्त रिफार्मर और ऊंने दर्ज के प्रचारक हए हैं। यह हमारी कौमी तारीख के कीमती रत्न हैं। तम कहाँ ? और किन में धर्मात्मा प्राणियों की तलाश करते हो? इनको देखो इनसे बेहतर साहिबे कमाल को कहां मिलेगा? इनमें त्याग था, वैराग था, धर्म का कमाल था। यह इंसानी कमजोरियों से बहुत ऊंचे थे। इनका
जिसके जिन्होंने मोह माया, मन और काया को जीत लिया था। ये तीर्थकर हैं। परमहंस हैं। इनमें बनावट नहीं थी. कमजोरियों और ऐबों को छुपाने के लिए इनको किसी पोशाक की जरूरत नहीं हुई। इन्होंने तप, जप और योग का साधन