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नार
इज्जत की रक्षा या देश सेवा में होती है। उन तीनों प्रकार की हिसा का गहस्थ को त्याग नहीं बताया। वेद भगवान का उपदेश भी यही है कि किसी के साथ राग द्वेप से वात न करो। महर्षि दयानन्द के जीवन में यही तीन बातें रोशन हैं । त्याग, तप और परोपकार।
० महावीर के जीवन के भी यही तीन गुण बहुत प्यारे लगते हैं। ग्राज के संसार को इनकी बहुत जरूरत है, लेकिन दुनिया के सामने इस वक्त ये तीन चीजें हैं
भोग तन यासानी
खुदगर्जी यही ठीक त्याग अहिसा के या परोपकार के उलटे हैं। जब दुनिया उलटी जा रही हो तो इसका दु:खी होना कुदरती बात है। सूख तभी प्राप्त होगा जब संसार फिर उसी त्याग, तप अहिंसा का पालन करे।
देश की रक्षा करने वाले जैनवीर
महामहोपाध्याय रायबहादुर पं. गौरीशंकर हीरा चन्द ओझा जैन धर्म में दया प्रधान होते हुए भी यह लोग वीरता में दसरी जातियों से पीछे नहीं रहे। राजस्थान में मंत्री आदि अनेक ऊंची पदवियों पर सैकड़ों वर्षों तक अधिक जनी ही रहे हैं, और उन्होंने अहिंसा धर्म को निभाते हुये वीरता के ऐसे अनेक कार्य किये हैं जिससे इस देश की प्राचीन उदार कला की उत्तमता की रक्षा हुई। उन्होंने देश को आपत्ति के समय महान सेवायें की और उसकार गौरन बढ़ाया।
-भूमिका राजपूताने के जैनवीर पृ० १४ राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय जैनधर्म
डा० श्री कालिदास नाग वाइस चांसलर कलकत्ता पूनिसिटी . जैन धर्म किसी खास जाति या सम्प्रदाय का धर्म नहीं है बल्कि यह अन्तर्राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय धर्म है।
जैन तीर्थकरों की महान ग्रात्मानों से संसार के राज्यों के जीतने की चिन्ता नहीं की थी, राज्यों को जीतना कुछ ज्यादा कठिन नहीं है, जैन तीर्थंकरों का ध्येय राज्य जीतने का नहीं है बल्कि स्वयं पर विजय प्राप्त करने का है। यही एक महान् ध्येय है, और मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है। लड़ाईयों से कुछ देर के लिए शत्रु दब जाता है, दुश्मनी का नाश नहीं होता । हिंसक युद्धों से संसार का कल्याण नहीं होता। यदि आज किसी ने महान परिवर्तन करके दिखाया है तो वह अहिंसा सिद्धान्त की खोज और प्राप्ति संसार के समस्त खोजों और प्राप्तियों से महान है।
यह मनुष्य का स्वभाव है नीचे की ओर जाना । परन्तु जैन तीर्थकरों ने सर्वप्रथम यह बताया कि अहिंसा का सिद्धान्त मनुष्य को ऊपर उठाना है।
आज के संसार में सबका यही मत है कि अहिंसा सिद्धान्त का महात्मा बुद्ध ने आज से २५०० वर्षों पहले प्रचार किया। किसी इतिहास के जानने वाले को इस बात का बिल्कुल ज्ञान नहीं है कि महात्मा बुद्ध से करोड़ों वर्ष पहले एक नहीं बल्कि अनेक जैन तीर्थंकरों ने इस अहिंसा सिद्धान्त का प्रचार किया है। जैन धर्म बुद्ध धर्म से करोड़ों वर्ष पहिले का है। मैंने प्राचीन जैन क्षेत्रों और शिलालेखों के सलाइड्ज तैयार करके इस बात को प्रमाणित करने का यत्न किया है कि जैनधर्म प्राचीन धर्म है जिसने भारतीय संस्कृति को बहुत कुछ दिया परन्तु अभी तक संसार की दृष्टि में जैन धर्म को महत्व नहीं दिया गया । उनके विचारों में यह केवल बीस लाख आदमियों का एक छोटा-सा धर्म है। हालांकि जैन धर्म एक विशाल धर्म है और अहिंसा पर तो जैनियों को पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
-अनेकान्त वर्ष १०५०२२४ जैन धर्म की प्रावश्यकता
डा० राईस डेविड एम० ए० डी० लिट यह बात अब निश्चित है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से निःसन्देह बहुत पुराना है और बुद्ध के समकालीन महावीर द्वारा उसका पुनः संजीबन हुन्मा है और यह बात भी भली प्रकार निश्चित है जैन मत के मन्तव्य बहुत ही जरूरी और बौद्ध मत के मन्तव्यों से बिल्कुल विरुद्ध हैं।
-इन्साइक्लोपिडीया विटेनिका व्हाल्यम २६
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