________________
(२)
भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध का प्रारम्भिक जीवन
ईसा से पूर्व छठी शताब्दि के भारत में जो क्रान्ति उपस्थित थी उसके शमन करने के लिये ही मानो भगवान् महावीर पर म० बुद्ध का शुभागमन हुआ था। वह दोनों ही महानुभाव इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रियों के गृह में अवतीर्ण हुए थे। यद्यपि दोनों ही युग प्रधान पुरुष हम साप जैसे मनुष्य थे, परन्तु अपने पूर्व भवों में विशेष पुण्य उपार्जन करने के कारण उनके जीवन साधारण मनुष्यों से कुछ अधिकता लिए हुए थे । यही बात बौद्ध और जैन ग्रन्थ प्रगट करते हैं । बौद्ध शास्त्र कहते हैं कि जिस समय म० बुद्ध का जन्म हुआ उस समय कतिपय अलौकिक घटनाएं घटित हुई थी और जब वह अपनी माता के गर्भ में माये थे तब उनकी माता ने शुभ स्वप्न देखे थे। भगवान् महावीर के विषय में कहा गया है कि जब वे अपनी माता के गर्भ में आये थे तब उनकी माता ने सोलह शुभ स्वप्न देखे थे जिनके सांकेतिक अर्थ से एवं उस समय स्वर्गलोक के देवगणों द्वारा उत्सव मनाने से यह ज्ञात हो गया था कि अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर का जन्म शीघ्र ही होगा। चैत्रदला त्रयोदशी के रात जब उनका जन्म हुआ तो दिशायें निर्मल हो गई थीं, समुद्र स्तब्ध हो गया था. पृथ्वी किचित् हिल गई थी और सब जीवों को क्षण भर के लिए परम शांति का अनुभव मिल गया था। इस समय भी एवं अन्य दीक्षा धारण केवल ज्ञान प्राप्ति और मोक्ष लाभ के अवसरों पर भी देवगणों ने आकर उत्सव मनाये थे ।
1
म० बुद्ध का पूर्ण नाम गौतम बुद्ध था और वह सिद्धार्थ के नाम से भी ज्ञात थे, किन्तु उनकी प्रपाति कल केवल म० बुद्ध के नाम से हो रही है, यद्यपि वस्तुतः यह उनका एक विशेषण ही है, जैसे भगवान् महावीर को तीर्थकर बतलाना । बौद्ध धर्म में बुद्ध शब्द का प्रयोग इसी तरह हुआ है जिस तरह तीर्थकर शब्द का व्यवहार जैन धर्म में होता है तथापि जिस तरह जैन शास्त्रों में भगवान् महावीर के पूर्व भवों का दिग्दर्शन कराया गया है। उसी तरह म० गौतम बुद्ध के भी पूर्व भव की कथायें बौद्ध साहित्य में "जातक कथाओंों के नाम से विख्यात हैं। म० बुद्ध ने भी तिच मनुष्य देव आदि कितनी हो योनियों में जीवन व्यतीत करके अन्ततः देव योनि से चलकर राजा शुद्धोदन के यहां जन्म धारण किया था। कहा जाता है कि इस घटना से बीस “असंख्य-कप-लक्ष" अर्थात् बुद्ध होने के “मनोपरिनिदान " से अपने जन्म तक बुद्ध ने तीस " परिमिताओं" का पूर्ण पालन किया था, तब ही वह बुद्ध हुए थे। यह "परिमितायें" मूल में दस हैं, परन्तु साधारण उप और परमार्थ के भेद से वे ही तीस प्रकार की हैं। बुद्ध पद को प्राप्त होने के लिए उनका पालन कर लेना आवश्यक है। वे यह है (१) दानपारिमिता चौदों के तीन प्रकार का दान देना, (२) शीलपारिमिता बौद्ध व्रतों का पालन करना (३) नैसकर्मचारिमितासंसार से विरक्त होकर त्यागावस्था का धभ्यास करना, (४) प्रज्ञापारिमिता बुद्ध से प्राप्त गुणों को प्रकट करना (५ वीर्यपारिमिता दृढ़ वीरव को प्रकट करने वाला साहस (६) शान्ति पारिमिता उत्कृष्ट प्रकार की सहनशीलता, (७) सत्तपारिमिता सत्य भाषण (८) अदिष्टान पारिमिता दृढ प्रतिज्ञा की पूर्णता, (६) मंत्री पारिमिता प्रेम और दया का व्यवहार करना, और (१०) उपेक्षा पारिमिता - शत्रु मित्र पर समान भाव रखना । म० बुद्ध ने अपने पूर्व भवों में इनके अभ्यास में कमाल हासिल कर लिया था, यह बात बीद्ध पास्त्रों में कही गई है। यह भी कहा गया है कि बुद्ध देवलोक में अधिक नहीं ठहरते थे वह अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए मनुष्य भव को ही बारवार प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे क्योंकि देवलोक में रहकर वह अपने उद्देश्य को प्राप्ति नहीं कर सकते थे। जैन धर्म में भी परमार्थ साधन और सर्वश पद पाने के लिए मनुष्य भव लाजमी बहलाया गया है। परन्तु वहाँ तीर्थकर पद पाने के लिए निदान बांधना आवश्यक नहीं है, जैसा कि गौतम बुद्ध ने बुद्ध पद पाने के लिए अपने एक पूर्व भव में किया था निदान बांधना जैन धर्म में एक निःकृष्ट किया है, जबकि बौद्ध धर्म में वह ऐसो नहीं मानी गई है। पारि मिताओं के साथ २ बुद्ध पद को पाने के लिए निम्न ग्राठ गुण भी उस व्यक्ति में होना श्रावश्यक है - ( १ ) वह मनुष्य होना चाहिये न कि देव | इसीलिए बौधिसत् ( बुद्ध पद पाने का इच्छुक दस शील- व्रतों को पालन करते हैं कि उसके फलस्वरूप वह मनुष्य का जन्म धारण करें, (२) वह पुरुष होना चाहिए, न कि स्त्री (३) उनका पुण्य इतना प्रबल होना चाहिए, जिससे वे अर्हत हो सकें, ( ४ ) यह अवसर भी उसको मिल चुका हो जिसमें उसने एक परमोत्कृष्ट बुद्ध की उपासना की हो और उनमें पूर्ण श्रद्धा रखती हो (५) विरक्त गृह त्याग अवस्था में रहना आवश्यक है, (६) ध्यान आदि कियाओं के साधन से प्राप्त
७६२.