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अर्थात् संताप क्रम से चले आये हुए जीव के आचरण की गोत्र संज्ञा है । जिसका ऊंचा प्राचरण हो उसका उच्च गोत्र और जिसका नीच आचरण हो उसका नीच गोत्र है यह नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति नीच वर्ग में उत्पन्न हुआ है और वह सत्संगति को पाकर अपने आचरण को सुधार कर उन्नत बना ले तो भी वह नीच बना रहे, प्रत्युत उसके उच्चाचरणी होने पर उसका गोत्र भी यथा समय उपच हो जावेगा। भगवान् महावीर के इस यथार्थ संदेश से जनता को वास्तविक परिस्थिति का पता चल गया और वह आपस के अमानुषी व्यवहार को तिलान्जली देकर प्रेमपूर्ण व्यवहार करने पर उतारु हो गई । याधुनिक विद्वान् भी इस पूर्व घटना पर आश्चर्य प्रगट करते हैं, किन्तु सत्य के साम्राज्य में ऐसी घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक है।
इस तरह उस समय की सामाजिक परिस्थिति भी इस समय से विशेष उदार थी धीर थोथी कोसनेवाली की उसमें स्थान शेष नहीं रहा था भगवान् पार्श्वनाथ के दिव्योपदेश से सामाजिक व्यवस्था में हलचल खड़ी हो गई थी, क्योंकि भगवान नेमिनाथ के दीर्घ अन्तराल काल में ब्राह्मण संप्रदाय का प्राबल्य अधिक बढ़ गया था और विप्रगण अपने स्वार्थमय उद्देश्यों को पूर्ति में मनुष्य समाज के प्रारंभिक स्वस्थों को अपहरण कर चुके थे। इस दशा में जब भगवान् पार्श्वनाथ ने जनता की वस्तुस्थिति बताई तो उसके कान खड़े हो गये और उसमें से प्रभावशाली व्यक्ति प्रगाड़ी चाकर ब्राह्मणों द्वारा प्रचलित सामायिक व्यवस्था के विरुद्ध लोगों को उपदेश देने लगे । फलतः एक सामाजिक क्रान्ति सी उपस्थित हुई। जिसका शमन म० बुद्ध और फिर पूर्णतः भगवान् महावीर के अपूर्व उपदेश से हुआ। जिन सुधारों की आवश्यकता थी, वह सुगमता से पूर्ण हुए श्री मनुष्यों में जो आपसी भेद अधिक बढ़ रहे थे उनका अन्त हुआ । तत्कालीन जैन और बौद्ध विवरणों को ध्यानपूर्व पढ़ने से यही परिस्थिति प्रतिभाषित होती है। सचमुच इस समय भी कार्यत्व की रक्षा के लिए भगवान् महवीर के दिव्य संदेश को दिगन्तब्यापी बनाने की आवश्यकता है। मनुष्य समाज उससे विशेष लाभ उठा सकता है।
जिस तरह हम सामाजिक परिस्थिति के सम्बन्ध में देखते हैं कि उस समय एक क्रान्ति-सी उपस्थिति थी, ठीक यही दशा धार्मिक वातावरण में हो रही थी । सर्वत्र अशान्ति का साम्राज्य था। ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दि में भगवान् पार्श्वनाथ ने जो उपदेश दिया उसका जो प्रभावकारी फल हुआ उसका दिग्दर्शन हम ऊपर कर चुके हैं। सचमुच लोगों को राज्यनैतिक और सामाजिक स्वतंत्रता के उस समृद्धशाली जमाने में अपने असली स्वाधीनताग्रात्मस्वतांच्य को प्राप्त करने की धून सवार हो गई थी और यह प्रचलित को क्रियाकाण्डों को हेय दृष्टि से देखने लगे थे। इस दशा में उस समय धार्मिक वातावरण में बो विभाग स्पष्टतः नजर आते थे। एक तो प्राचीन क्रियाओं और यश रोतियों का कायल ब्राह्मण वर्ग का और दूसरा नवीन सुधार को समक्ष लाने वाला "समय" ( अमण ) दल था वह द्वितीय दल अनेक प्रतिज्ञाजाओं में विस्तृत मिलता था। जेन शास्त्र इनकी संख्या तीन सौ त्रेसठ बनाते हैं, परन्तु बौद्ध सिर्फ प्रेस ही इस मतभेद का निष्कर्ष यही प्रतात होता है कि उस समय अनेक विविध पंथ प्रचलित थे। सामाजिक क्रांति के दौरदीरे में जो कोई भी ब्राह्मण के विरुद्ध कितने भी लचर सिद्धान्तों को लेकर खड़ा हो जाता था, उसी को लोग अपनाने लगते थे। विशेषकर क्षत्रिय वर्ष ऐसे विरोधकों का सहायक बन रहा था पोर वह उनके लिए मंदिर, आश्रम श्रादि भी बनवा देता था ।
प्रथम ब्राह्मण वर्ग विशेषकर यह क्रियाओं और पशु बलिदान को मुख्यता देता था और उनमें जो विशेष उन्नति किए हुए परिव्राजक लोग थे, जिनकी उपनिषद आदि रचनायें प्रसिद्ध हैं, वह ज्ञान और ध्यान को ही श्रात्मस्वातंत्र्य के लिए आव श्यक समझते थे। ऋषिगण भगवान् पार्श्वनाथ के पहिले से ही निदान पोषक वित्रों के साथ २ चया रहे थे । प्रततः भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश को सुनकर इनमें से भी ऋषिगण अलग होकर अपनी स्वतंत्र माम्नाय "आजीवक" नामक बना चुके थे इनकी गणना दूसरे दल में की जाती थी यह दूसरा दल ज्ञान धीर ध्यान के साथ चारित्र को विशेष सादर देता था। इनकी मान्यता थी कि बिना चारित्र के मनुष्य ग्रात्मोन्नति कर ही नहीं सकता है। इस दल के प्रख्यात प्रर्वतकों की संख्या म० बुद्ध ने अपने सिवाय छह बतलाई है। इनको वह 'तित्थिय" कहते हैं । इनके नाम इस तरह बताये गये हैं (१) पूर्णकाश्यप ( २ ) मस्करि गोशालीपुत्र ( मक्खलि गोशाल ) ( ३ ) संजय वैरथी पुत्र ( ४ ) अजित केशकम्बल (५) पकुडकायायन और (६) निगन्धनासपुत (महावीर) धौर यह प्रत्येक अपने अपने संघ के नेता गणाचार्य तीर्थकर, तत्ववेत्तारूप में विशेष प्रख्यात, मनुष्यों द्वारा पूज्य अनुभवशील और दीर्घ आयु के समन (भ्रमण) बतलाये गए हैं। इनमें स० बुद्ध पौर भगवान् महावीर विशेष प्रख्यात है। बतए इसके विषय में खास तौर पर परिचय पाने का प्रयत्न निम्न के पृष्ठों में किया जायगा, परन्तु शेष के पांच मत प्रवर्तकों के विषय में भी यहां पर किंचित ज्ञान प्राप्त कर लेना बुरा नहीं है।
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