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विषय में कहते हैं :
चौदह आभ्यन्तरिक और दश वाघ पारग्रह परित्याग करने से निर्धन्य होते हैं ... ...""जब वे अपनी नग्नावस्था को विस्मृत हो जाते हैं तब ही भवसिन्धु से पार हो सकते हैं। ...'' ( उनकी) नग्नावस्था और नग्न मुतिपूजा उनका प्राचीनत्व सप्रमाण सिद्ध करती है, क्योंकि मनुष्य प्रादिम अवस्था में नग्न थे।"
महाराष्ट्रीय विद्वान् श्री वासुदेव गोबिन्द आपटे बी० ए० ने एक व्याख्यान में कहा था कि "जैन शास्त्रों में जो यतिधर्म कहा गया है वह अत्यन्त उत्कृष्ट है, इसमें कुछ भी शंका नहीं है।"प्रो. डा. शेषागिरि राव, एम० ए०, पी० एच०डी० बताते हैं कि -
"(The Jaina) faitli helped towards the formation of yood and great character helpful to the progress of Culture and humanity. The leading exponents of that faith continued to live such lives of hardy discipline and spiritual culture cet."
भावार्थ-"जैनधर्म संस्कृति और मानव समाज की उन्नति के लिए उत्कृष्ट और महान चारित्रको निर्माण कराने में सहायक रहा है । इस धर्म के प्राचार्य सदा की भांति तपश्चरण और यात्मविकास का उन्नत जीवन व्यतीत करते
ईसाई मिशनरी ए. डबोई सा० ने दिगम्बर मुनियों के सम्बन्ध में कहा था कि :---
"सबसे उच्च पद जो कि मनुष्य धारण कर सकता है वह दिगम्बर मुनि का पद है । इस अवस्था में मनुष्य साधारण मनुष्य न रहकर अपने ध्यान के बल से परमात्मा का मानो अंश हो जाता है । जब मनुष्य निर्वाणी (दिगम्बर) साध हो जाता है तब उसको इस संसार से कुछ प्रयोजन नहीं रहता और वह पुण्य-पाप, नेको-बदो को एक ही दृष्टि से देखता है-उसको संसार की इच्छाएं तथा तृष्णायें नहीं उत्पन्न होती हैं। न वह किसी से राग और न द्वेष करता है। वह बिना दु:ख मालम किये सर्व प्रकार के उपसर्गों को सहन कर सकता है।"..."अपने प्रात्मिक भावों में जो भीजा हो उसको क्यों इस संसार की और उसकी निस्सार क्रियानों को चिन्ता होगी !"
एक अन्य महिला मिशनरी श्री स्टीवेन्सन ने अपने ग्रन्थ "हार्ट आव जनोज्म" में लिखा है कि:
Being rid of clothes one is also rid of a lot of othero worries, no water is needed in which to wash them. Our knowledge of good and evil, our knowledge of nakedness keeps away from salvation. To obtain it we must forget nakedness. the Jaina Nirgranthas have forvet all knowledge of good and cvil. Why should they require clothes to hide their nakednese (Heart of Jainism, p.35)
भावार्य-"वस्त्रों की झझट से छूटना, हजारों अन्य झंझटों से छूटना है। कपड़े धोने के लिए एक दिगम्बर बेपोको पानी की जरूरत नहीं पड़ती। वस्तुत: पाप-पूण्य का भान ही, नग्नता का ध्यान ही मनुष्य को मुक्त नहीं होने देता । मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को नग्नता का ध्यान भुला देना चाहिये । जैन निग्रन्थों ने पाप पुण्य के भान को भुला दिया है। भला उन्हें नग्नता छिपाने के लिये वस्त्रों की क्या जरूरत ?"
सन १९२७ में जब लखनऊ में दिगम्बर मुनि संघ पहुंचा तो श्री अलफोड ने जेकब शा(Alfred Jacab Sensatna एक ईसाई विद्वान ने उसके दर्शन किये थे। वह लिखते हैं कि प्राचीन पुस्तकों में सम्मेदशिखर पर दिगम्बर मनियों के ध्यान करने बाबत पढा जरूर था लेकिन ऐसे साधुओं को देखने का अवसर प्रजिताधम में ही मिला। वहां चार दिगम्बर मनियान
और तपस्या में लीन थे। माग-सी जलती हुई छत पर बिना किसी क्लेश के बह ध्यान कर रहे थे। उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि हम परमात्मास्वरूप आत्मा के ध्यान में लीन रहते हैं। हमें बाहरी दुनियाँ की बातों और दुःख-सख से क्या मतलब? १. जैम०, पृ० १५१
२. जैम०, पृ ५७ ३. SSIJ. pt. II P. 30
४. जैम, पृ० १०५
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