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दक्षिण भारत की 'नन्दयाल कैफियत' (Nandyala kaiphiyat) में लिखा है ? कि 'जैनमुनि अपने सिरों पर बाल नहीं रखते थे कि शायद कहीं जं न पड़ जाय और वे हिंसा के भागी हों। जब वे चलते थे तो मोरपिच्छो से रास्ते को साफ कर लेते थे कि कहीं सूक्ष्म जीवों की विराधना न हो जाय । वे दिगंबर वेषधारण किये थे, क्योंकि उन्हें भय था कि कहीं उनके कपडे और शरीर के संसर्ग से सूक्ष्म जीवों को पीड़ा न पहुंचे । वे सर्यास्त के उपरान्त भोजन नहीं करते थे, क्योंकि पवन के साथ उडते हए जीवजन्तु कहीं उनके भोजन में गिर कर मर न जाय ।" इस वर्णन से भी दक्षिण भारत म दिगंबर मनियों का बाहुल्य और निर्बाध धर्म प्रचार करना प्रमाणित है।
"सिद्धबत्तम् कैफियत'(Siddhavattam Kaiphiyut) से प्रगट है कि "वरंगल के जन राजा उदार प्रकृति थे। वे दिगंबरों के साथ २ अन्य धर्मों को भी प्राथय देते थे ।" "बरंगल कैफियत" से प्रगट है कि वहां वृषभाचार्य नामक दिगबर मनि विशेष प्रभावशाली थे।
दक्षिणभारत के ग्राम्य-कथा-साहित्य में एक कहानी है। कि "वरंगल के काकतीयवंशी एक राजा के पास ऐसी खड़ाऊ थीं जिसको पहन कर वह उड़ सकता था और रोज बनारस में जाकर गंगा स्नान कर आता था। किसी को भी इसका पता न चलता था। एक रोज उसकी रानी ने देखा कि राजा नहीं हैं बह जैन धर्म परायण थी। उसने अपने मुस्यों मे राजाके संबन्ध में पूछा। जैनगुरु ज्योतिष के विशेष विद्वान थे; उन्होंने राजा का सब पता बता दिया। राजा जब लौटा तो रानी ने उसको बताया कि वह कहां गया था और प्रार्थना को कि वह उसे भी बनारस ले जाया करें। राजा ने स्वीकार कर लिया। वह रानी भी बनारस जाने लगी। एक रोज मार्ग में वह मासिकधर्म से हो गई । फलतः खड़ाऊ की वह विशेषता नष्ट हो गई। राजा को उस पर बड़ा दुःख हुया और उसने जैनों को कष्ट देना प्रारम्भ कर दिया ।" इस कहानी से विधर्मी राजाओं के राज्य में भी दिगंबर मनियों का प्रतिभाशाली होना प्रकट है।
अस्लनन्दि शैवाचार्य कृत "शिवज्ञानसिद्धियार" में परपक्ष संप्रदायों में दिगंबर जैनों का "श्रमणरूप" उल्लेख है।। समाहाजास्यमाहात्म्य ' में जदुरा के शंको और दिगंबर मुनियों के बाद का वर्णन मिलता है।
इस प्रकार तामिलसाहित्य के उपरोक्त वर्णन में दक्षिणभारत में दिगंबर मुनियों का प्रतिभाशाली होना प्रमाणित है। वे वहां एक अत्यन्त प्राचीनकाल से धर्मप्रचार कर रहे थे।
भारतीय पुरातत्य और दिगम्बर मुनि "Chalcolithic civilisation of the Indus Valley was something quite different from the Vediccivilisation" "On the cve of the Aryan immigration the Indus Valley was in possession of a civilized and warlike people".
B. B. Ramprasad Chanda. मोहन-जोदारो का पुरात्व और विर्गवरत्व भारतीय पुरातत्व में सिंघदेश के मोहन जोडरो और पंजाब के हरप्पा नामक ग्रामों से प्राप्त पुरातत्व अतिप्राचीन है। वह ईस्वी सन् मे तीन-चार हजार वर्ष पहले का अनुमान किया है। जिन विद्वानों ने उसका अध्यय किया है, वह इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि सिंधुदेश में उस समय एक अतीव सभ्य और क्षत्रिय प्रकृति के मनुष्य के रहते थे, जिनका धर्म और
- - - - - - - - --- १. lbid., pti pp. 10-11 २. Ibid, p. 17
३. bid p. 18 ४. SSIJ., pt pp. 27-28
५. Sc, p. 243 ६. !RQ.. Vol. IV.p:564
७: SPCIV, I pp. 25