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शिवनन्दि
॥ २०६१ विश्वचन्द्र
।। १०६८ हरिनंदि (सिंहनदि) भावनंदि
सन् ११०३ देवनादि विद्याचन्द्र सूरचन्द्र
, १११६ माघनंदि ज्ञानदि गंगकीति
॥ ११४२ इन दिगम्बराचार्यों द्वारा उस समय मध्यदेश में जन धर्म या खूब प्रचार हुया था। वि० सं० १०२५ में अल्ल नामक राजा की सभा में दिगम्बराचार्य का बाद एक श्वेताम्बर आचार्य से हना था।
चन्देल राज्य में विगम्बर मुनि चन्देल राजा मदनवमदेव के समय (१५३०-११६५ई०) में दिगम्बर धर्म उन्नतरूप रहा था । खजुराहो में घंटाई के मन्दिर बाल शिलालेख से उस समय दिगम्बराचार्य नेमिचन्द्र का पता चलता है।
तेरहवीं शताब्दि में अनन्त वीर्य मामक दिगम्बराचार्य प्रसिद्ध नैयायिक थे। उन्होंने वादियों को गतमद किया था।
इसी समय को लगभग एक गुणकीति नामक महामुनि विशद धर्म-प्रचारक थे। उन्हीं के उपदेश से पद्मनाभ नामक कायस्थ कवि ने 'यशोधर चरित्र' की रचना को थो । ५
राजपूताना, मध्यप्रान्त बंगाल प्रावि देशों के शासक और दिगम्बर मुनि अजमेर के चौहान राजारों में भी दिगम्बर जैन धर्म का आदर था। बीजोलिया के थी पायर्वनाथजी के मन्दिर को दिगम्बर मुनि पद्मनन्दि और शुभचन्द्र के उपदेश से पृथ्वीराज ने मोराकुरी गांव और सोमेश्वर राजा ने रेवाणनामक गांव भेंट
किये थे ।
चित्तौर का जैन कीर्ति स्तम्भ बहां पर दिगम्बर जैन धर्म की प्रधानता का द्योतक है। सम्राट कुमारपाल के समय वहाँ पहाड़ी पर बहुत से दिगम्बर जैन (मुनि) थे।"
दिगम्बर जैनाचार्य श्री धर्मचन्द्र जी का सम्मान और बिनय महाराणा हम्मीर किया करते थे।
झांसी जिले का देवगढ़ नामक स्थान भी मध्यकाल में दिगम्बर मुनियों का केन्द्र था। वहाँ पांचवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक का शिल्प कार्य दिगम्बर धर्म की प्रधानता का द्योतक है।
ग्वालियर में करछपघाट (कछवाहे) और पड़िहार राजाओं के समय में दिगम्बर जैनधर्म उन्नत रहा था। ग्वालियर किले को नग्न जैनमूर्तियां इस व्याख्या की साक्षी हैं । वारानगर के बाद दिगम्बर मुनियों का केन्द्रस्थान ग्वालियर हुआ था । और
१. ADJB.p. 45. २. विको भा० ७१० १६२ । ३. विको भा०५५, ६८० ४. ADJB., p. 86 ५. उपदेदोन सन्योऽयं गुरणकोति महामुनेः । कायस्थ पद्मनाभेन चरितः पूर्व सूत्रतः ।।-प्रशोघर चरित्र । ६. रा०, भा० १ पृ० ३६३ ।।
७. "It (जंन कीतिस्तम्भ ) belongs to the Digambar Jains, many of whom seem to have been upon the Hill in Kumarpal's time."
--मनास्मा०, पृ० १३५ ८. "श्रीधर्मचन्द्रोऽजनिलस्यपट्टे हमीर भूपाल समर्चनीयः ।" जैहि-भा०६ यंक ७-८ १०२६