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श्रीचन्द्र,
गिना जाने लगा।' इन विद्वानों में दिगम्बर मुनियों का भी सद्भाव ! सम्राट हर्ष के राज कवि बाण ने अपने ग्रन्थों में उनका उल्लेख किया है । बह लिखता है कि "राजा जब गहन जंगल में जा पहुंचा तो वहां उसने अनेक तरह के तपस्वी देखे । उनम नम्न ( दिगम्बर ) आहंस ( जैन ) साधु भी थे।" हर्ष ने अपने महासम्मेलन में उन्हें शास्त्रार्थ के लिए बुलाया था और वह एक बड़ी संख्या में उपस्थित हुए थे। इससे प्रकट है कि उस समय हर्ष की राजधानी के पास-पास भी जैन धर्म का प्राबल्य था, बैसे तो बह सारे भारत में फैला हुआ था। उज्जैन का दिगम्बर जैन संघ अब भी प्रसिद्ध था और उसमें तत्कालीन निम्न दिगम्बर जैनाचार्य मौजूद थे :१. श्री दिगं० जैनाचार्य महाकीति,
सन् ६२६ में प्राचार्य हुये; विष्णुनन्दि, श्रीभूषण,
1 ६७८ श्रीनन्दि, ६. देशभुषण,
इत्यादि। सम्राट हर्ष के समय में (७ वी श०) चीन देश से हुएनसांग नामक यात्री भारत पाया था। उसने भारत और भारत के बाहर दिगम्बर जैन मुनियों का अस्तित्व बतलाया है। वह उन्हें निग्रंन्य और नंगे साधु लिखता है तथा उनकी केशलञ्चनक्रिया का भी उल्लेख करता है। वह पेशावर की ओर से भारत में घुसा था। और वहीं सिंहपुर में उसने नंगे जैन मनियों को पाया था। इसके उपरान्त पंजाब के और मथुरा, स्थानेश्वर, ब्रह्मपुर, अहिक्षेत्र, कपिथ, कन्नौज, अयोध्या. प्रयाग कौशाम्बी बनारस, थावस्ती, इत्यादि मध्य देशवर्ती नगरों में यद्यपि उसने दिगम्बर मुनियों का पृथक उल्लेख नहीं किया है; परन्तु एक साथ सब प्रकार के साधुओं का उल्लेख करके उसने उनके अस्तित्व को इन नगरों म प्रकट कर दिया है। मथरा के सम्बन्ध में वह लिखता है कि पांच देव मन्दिर भी हैं, जिनमें सब प्रकार के साधु उपासना करते हैं।"; स्थानेश्वर के विषय में उसने लिखा है कि "पांच देवमन्दिर बने हैं, जिसमें नाना जाति के अगणित भिन्न धर्मावलम्बी उपासना करते हैं।" ऐसे ही उल्लेख अन्य नगरों के सम्बन्ध में उसने किये हैं।
राजगह के वर्णन में हुएनसांग ने लिखा है कि "विपुल पहाड़ी की चोटी पर एक स्तूप उस स्थान में है, जहां प्राचीनकाल में तथागत भगवान् ने धर्म की पुनरावृति की थी। आजकल बहुत से निर्गन्थ लोग ( जो नंगे रहते हैं ) इस स्थान पर पाते हैं और रातदिन अविराम तपस्या किया करते हैं तथा सवेरे से सांझ तक इस ( स्तूप) की प्रदक्षिणा करके बड़ी भक्ति से पूजा करते हैं।"
पृघडवर्द्धन (बंगाल) में वह लिखता है कि "कई सौ देवमन्दिर भी हैं, जिनमें अनेक साम्प्रदाय के विरुद्ध धर्मावलम्बी
१. भाइ०, पृ० १०३-१०४। २. दिमु०, पृ० २१ । ३. HARI., p. 270. ४. जैहिक, भा० ६ अंक ७-८ पृ० ३० ३ ]A., XX. 352.
4. Hieun Tsang found them (Jaips) spread through the whole of India and even beyond its boundaries."--AISJ.,p. 45. विशेष के लिये व्हानसांग का भारत भ्रमण ( इण्डियन प्रेस लि.) देखो।
E, "The Li-Hi (Nirgranthas) distinguish themselves by leaving their bodies naked & pulling out their heir. Their skin is all cracked, their feet are hard and chapped like cotting
-( St. Julien, Vicotia. p, 224 ) ७. हुआ०, पृ० १४३ ८. हुआ०, पृ० १८१ १. हुआs, पृ० १८६ १०. हमा, पृष्ट ४७४-४७५
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