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पावापुरी
भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सब में केवल तीस महीने शेष हैं। हम लोग भगवान महावीर के धर्मतोर्थ और धर्म-शासन में निग्रन्थ श्रमण परम्परा का पालन कर रहे हैं। भगवान महावीर ने जिन विश्व-कल्याणकारी सिद्धान्तों का अपने जीवन में सफल प्रयोग करके उनका उपदेश दिया, वे सिद्धान्त क्रिसो देश, बर्ग जाति, और काल के लिए नहीं थे, वे तो प्राणी मात्र के कल्याणकारी थे, वे सार्वजनित, सार्वत्रिक और सार्वकालिक थे। वे तो सत्य सनातन सिद्धान्त थे, जिनका उपदेश उनसे पूर्ववर्ती तेईस तीर्थकरों ने भी दिया था। यही कारण है कि भगवान महावीर किसी एक वर्ग या जाति के ही आराध्य महापुरुष नहीं थे, वे तो राष्ट्रीय, राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय महापुरुष थे। उनके व्यक्तित्व को महानता ने सभी देशों के मनीषियों और सभी धर्मों के महापुरुषों को प्रभावित किया है।
उनके २५०० वें निर्वाण महोत्सव को मनाने की तैयारियाँ जोर शोर से हो रही हैं। भारत सरकार ने इस महोत्सब को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने के लिए बहुसुत्री योजनायें बनाई हैं। जैन समाज के चारों सम्प्रदाय संयुक्त रूप से और अपने-अपने सम्प्रदायों की ओर से व्यापक तैयारियों में जुटे हुए हैं। इस महोत्सव के निमित्ति से अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां चालू हो गई हैं तथा जैन धर्म, जैन संस्कृति और जैन समाज के उत्थान की अनेक विध परियोजनायें क्रियान्वित की जा रही हैं । इस अवसर पर जैन मात्र का कर्तव्य है कि वह इस महोत्सव को सफल बनाने के लिये अपने दायित्व को समझे और उसका पूर्णत: निर्वाह करे।
यों तो यह महोत्सव देश के प्रायः सभी नगरों में और विदेशों में मनाया जायगा, किन्तु भगवान महावीर से विशेष सम्बधित वैशाली, राजगृह और पावापुरी में विशेष प्रायोजनों के साथ समारोह पूर्वक मनाया जायगा । वैशाली का कुण्ड ग्राम भगवान की जन्म मगरी है, राजगृह के विपुलाचल पर भगवान ने धर्म-चक्र-प्रवर्तन किया था अर्थात उनका प्रथम उपदेश यहीं पर हसा था, और पावापुरी में भगवान का निर्वाण हुआ था, यह महोत्सव भगवान के निर्वाण को २५०० वर्ष पूरे होने के उपायमोजाया जा रहा है, इसलिए भगवान के निदरीण-स्थान को विशेष महत्त्व स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। अतः उनको निर्वाण-भूमि पावापुरी में भगवान का यह निर्वाण महोत्सव अत्यन्त उत्साह, समारोह पीर विविध प्रायोजनों के साथ मनाया जाना स्वाभाविक है।
किन्तु यह कितने आश्चर्य और दुःख की बात है कि ऐसे समय में, जबकि समग्र जैन समाज की चेतना इस महोत्सव को सफल बनाने के लिए एक जुट होकर कार्यरत है, कुछ लोगों ने पावा के सम्बन्ध में अशोभनीय विवाद खड़ा करके भ्रामक वातावरण बना दिया है। कुछ जंमतर इतिहासकारों, पुरातत्त्व वेत्ताओं और विद्वानों ने मल्लों की उस पावा की खोज करने का प्रयत्न किया है जहाँ महात्मा बुद्ध को सूकरमद्दव खाने से रक्तातिसार हो गया था। किन्तु ये विद्वान् इस विषय में एक मत नहीं हो सके।
इन्हीं विद्वानों के द्वारा दिये हुए बौद्ध साहित्य के सन्दर्भो को लेकर जैन समाज के कुछ श्रावकों ने सठियांव (देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश) को महावीर-निर्वाणवाली पाबा कहना शुरू कर दिया है। लगभग २५-२६ वर्ष पहले बाबा राघवदास प्रादि ने सठियांव में 'पावानगर महाबीर इण्टर कालेज की स्थापना की थी । लगता है, इन श्रावकों को इससे प्रेरणा मिली है और उन्होंने सठियांव को भगवान महावीर की निर्वाण-भूमि घोषित कर दिया है हमें आश्चर्य है। कि इतना बड़ा निर्णय इन्होंने स्वयं कैसे ले लिया। इन्हें चाहिए था कि ये आचार्यों और मुनियों से परामर्ष करते; जैन विद्वानों का सम्मेलन बलाकर उसमें
नेतर्क रखते और विद्वानों से निर्णय लेते। किन्तु इन धावकों ने ऐसा कुछ नहीं किया । जैन संघ जैनधर्म पीर जैनतीर्थ क्षेत्रों के सम्बन्ध में इस प्रकार अनधिकृत निर्णय करने को परम्परा उचित नहीं कही जा सकती।
सठियांव में कोई प्राचीन जैन सामग्री-मूर्ति, मन्दिर या अभिलेख-मिली हो. ऐसा इन श्रावकों के लेखों से नहीं लगता। इन लोगों की धारणा है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस पावा का उल्लेख मिलता है, उस काल में केवल वही एक पावा थी। किन्तु विचारणीय यह है कि जैन शास्त्रों में भगवान महावीर को निर्वाण-भूमि का नाम मजिकमा पावा मिलता है और बौद्ध शास्त्रों में महात्मा बद्ध से सम्बन्धित पावा का नाम मल्ल पावा मिलता है। पाया के साथ दोनों स्थानों पर भिन्न-भिन्न विशेषण लगाने का प्राशय क्या है ? श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के शास्त्रों के एक भी स्थान पर महावीर का निर्वाण मल्लों की
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