________________
' उस निष्कर्षण से भी महावीर निर्वाण का काल ६०५ ७८६ ई० पू० ५२७ ही होता है।
डा० वासुदेव उपाध्याय अपने अन्य गुप्त साम्राज्य का इतिहास में गुप्त संवत्सर की छानबीन करते हुए लिखते हैं:मलवेरुनी से पूर्व शताब्दियों में कुछ जैन सम्मकारों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि गुप्त तथा शक-काल में २४१ वर्ष का अन्तर है प्रथम लेखक जिनसेन, जो 5वीं शताब्दी में वर्तमान थे उन्होंने वर्णन किया है कि भगवान महावीर के निर्माण के ६०५ वर्ष ५ मास के पश्चात् शक राजा का जन्म हुआ तथा पाक के अनुसार गुप्त के २३६ वर्ष शासन के बाद कल्किराज का जन्म हुआ। द्वितीय ग्रन्थकार गुणन्द्र ने उत्तरपुराण में ई०) लिखा है कि महावीर निर्वाण के १०००
वर्ष बाद कल्किराज का जन्म हुआ। जिनसेन का तथा गुणभद्र के कथन का समर्थन तीसरे लेखक नेमिचन्द्र करते हैं।
नेमिचन्द्र त्रिलोकसार में लिखते हैं: शकराज महावीर - निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ माह के बाद तथा शक-काल के ३९४ वर्ष ७ माह के पश्चात् कल्किराज पैदा हुआ ।" इनके योग से - ६०५ वर्ष ५ माह - ३६४ वर्ष ७ माह = १००० वर्ष होते हैं । इन तीनों जैन अन्यकारों के कथनानुसार सकराज तथा कल्किराज का जन्म निश्चित हो जाता है।
इस प्रकार शक संवत् का निश्चय उक्त जैन धारणाओं पर करके विद्वान् लेखक ने महाराज हस्तिन् के शिला लेख मादि के प्रमाण से गुप्त संवत् और शक संवत् का सम्बन्ध निकाला है। निष्कर्ष रूप में वे लिखते हैं इस समता से यह ज्ञात होता है कि गुप्त संयत् की तिथि में २४१ जोड़ने से शक काल में परिवर्तन हो जाता है। इस विस्तृत विवेचन के कारण redit के कथन की सार्थकता ज्ञात हो जाती है। यह निश्चित हो गया है कि शक- काल के २४१ वर्ष पश्चात् गुप्त संवत् का आरम्भ हुआ ।' फलितार्थ यह होता है कि इस सारी काल-गणना का मूल भगवान महावीर का निर्माण-काल देना है। वहां से उतर कर यह काल-गणना गुप्त संयत् सक पाई है। यहां से मुड़कर यदि हम वापस चलते हैं, तो निम्नोक्त प्रकार से ई० पू० के महावीर - निर्वाण काल पर पहुंच जाते हैं ।
५.२७
गुप्त संवत् का प्रारम्भ महावीर निर्वाण
अतः महावीर का निर्माण-काल
तेरापंथ के मनीधी चाचायों ने जिस काल-गणना को माना है, उससे महावीर निर्वाण का समय ई० पू० ५२७ माता । भगवान महावीर की जन्म राशि पर उनके निर्वाण के समय भस्म-ग्रह लगा। उसका काल शास्त्रकारों ने २००० वर्ष का माना है । श्री मज्जयाचार्य के निर्णयानुसार २००० वर्ष का यह भस्म ग्रह विक्रम संवत् १५३१ में उस राशि से उतरता है । तथा शास्त्राकारों के अनुसार महावीर निर्वाण के १९६० वर्ष पश्चात् ३३३ वर्ष की स्थिति वाले धूमकेतु ग्रह के लगने का विधान है। श्री मज्जायाचार्य के अनुसार वह समय वि० सं० १८५३ होता है । उक्त दोनों अवधियां सहज ही निम्न प्रकार से महावीर निर्वाण के ई० पू० ५२७ के साल पर इस प्रकार पहुंच जाती हैं।
१. गुप्त साम्राज्य का इतिहास, प्रथम खंड १८२-१८३
२. भाग १ पृ० ३८२
३.
...गुप्तानां च शवयद्वम् ।
एकवित्व वर्षाणि कारितम् ॥४२० द्विचत्वारिशदेवातः कल्किराजस्य राजता । तोरात स्यादिन्द्रपुरस्थितः ॥४२॥
पीव्यवस्था पंचाथां मामपंचकम् । मुक्तिं गते महावीरे शकराजा ततोऽभवत् ।। ५१ ।
६०३१२
गुप्त संवत् पूर्व ८४६
ई०
१० पू० ५२७
-जिनसे कृत हरिवंशपुराण ४०६०॥
४. इण्डियन एंटीक्वेरी, बाल्यूम १५, पेज – १४३ ५. पण स्वयं वस्तं परणमाजजुदं गमिय वीरणिदुइदो । गराज सो कल्कि चदुपवतियमहिय संगमासं ॥ ६. गुप्त साम्राज्य का इतिहास, भाग १, पु० १८१
- त्रिलोकार, पृ० ३२ ।
५६६