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चोइससहस्ससगसय तेण उदीवास कालविण्छेदे।
बीरेसरसिद्धीदो उप्पण्णो सगणियो प्रहवा ।।१४७६८।। अर्थ :-अथवा, वीर भगवान की मुक्ति के पश्चात् चौदह हजार सात सा तेरानवै वर्षों के व्यतीत होने पर एक नृप उत्पन्न हुमा ॥१४६८।।१४७६३॥
णिव्वाणे वीरजिणे छन्वाससदेसु पंचबरिसेसु।
पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिनो अहवा ।।१४६६|६०५॥ अथवा, वीर भगवान के निर्वाण के पश्चात् छह सौ पांच वर्ष और पांच महिनों के चले जाने पर एक नप उत्पन्न हुमा ॥१४६६।। वर्ष ६०५ मास ५॥
वीसुसरवाससदे विसवो वासाणि सोहिऊण तदो।
इगिवीससहस्सेहि भजिदे पाऊण खयबड्डी ।।१५००॥ एक सौ बीस वर्षों में से बीस वर्षों को घटाकर जो शेष रहे, उस में इक्कीस हजार का भाग देने पर प्रायु के क्षय-वृद्धि का प्रमाण आता है ।।१५००॥
१२०-२०-२१०० =१२१० ।
श्वेताम्बर विद्वानों के मत से श्री १००८ भगवान महावीर स्वामी का काल निर्णय
श्री भगवान महावीर स्वामी के काल के सम्बन्ध में तेरापंथी मुनि नगराजजी द्वारा लिखित पागम और त्रिपिटक एक अनुशीलन नाम के ग्रन्थ में लिखा है कि
जैन परम्परा में मेरुतंग की विचार श्रेणी, तित्त्थोगालो, पइन्नम तथा तित्थो द्वारा प्रकीर्ण आदि प्राचीन ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण उन्होंने अवन्ती का माना है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलिपुत्र (मगध) राज्यारोहण के १० वर्ष पश्चात् अवन्ती में अपना राज्य स्थापित किया था। इस प्रकार जैन काल •णना और सामान्य ऐतिहासिक धारणा परस्पर संगत हो जाती है और महावीर का निर्वाण ई० पू० ३१२ + २१५ = ई० पू० ५२७ में होता है।
उक्त निर्वाण समय का समर्थन विक्रम, शक, गुप्त आदि ऐतिहसिक संवत्सरों से भी होता है 1 विक्रम संवत् के विषय -- - -
जं रयरिंग कालगयो, अरिहा तिस्थंकरो महावीरो। तं यणि मयणिवई, महिसित्तो पालो राया ।।१॥ षट्ठीं पालयरपणो ६०, पणवण्यासयं तु होई नंदा १५५ । प्रट्ठसयं मुरियाणं १०८, तीस यिय पूसमित्तस्स ३० ॥२॥ बलमित्त-भाणु मित्त सट्ठी ६०, दरिसारिण चत्त नहवाणे। तह मद्दभिल्लरज्ज तेरस १३, वरिस-सगस्स चउ (परिस्सा) ॥३॥ श्री विक्रमादित्यश्व प्रतिबोधितस्तद्राज्यं तु श्री दीरसतति-चतुष्टये ४७० संजातम् ।
धर्मसागर उपाख्याय, तपागच्छ-पट्टावली (सटीक सानुवाद पन्यास कल्याण विजयजी), पृ० ५०१२ विक्रमरज्जारंभा परमो सिरिवीरनिव्वुई भणिया। सुन्नमुणिवेयजुत्तो विक्कमकालउ जिणकालो। -विक्रमकालाज्जिनस्य धीरस्य कालो जिन कालः शून्य (०)
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