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जन सामाज द्वारा पावापुरी के नाम से पूजा जाने बाला निर्माण स्थल विहार शरोफ स्थान से लगभग १० मोल दरो पर स्थित है। यहां सरोवर के मध्य में संगमरमर का अत्यन्त भव्य तथा सुरम्य मन्दिर है । लगभग ६०० फुट लम्बे लाल पत्थर के पुल पर चलकर यह जल-मंदिर प्राप्त होता है। इस जल मंदिर के भीतर भगवान महावीर के श्याम वर्ण पाषाण के छोटे चरण विद्यमान हैं । इस मन्दिर में प्रवेश करते ही भगवान महावीर की पावन स्मृति जग जाने से भक्त के हृदय में मानन्द की धारा बहने लगती है । अद्भुत तथा वाणी के अगोचर शांतिप्रद यह पुण्य स्थल है। योग विद्या के अभ्यासी उसे महान साधना का स्थल मानते हैं। डा० जैकोबी इसे ही निर्वाण स्थल मानते हैं।
निवारण कालभगवान महावीर का निर्माण सामान्यतया ईसवी सन से ५२७ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस प्रकार सन १९६८ में भगवान को मोक्ष गए २४६५ वर्ष हो गए यह स्वीकार करना होगा। डा. कोबी का कथन है, कि भगवान का निर्वाण विक्रम राजा से ४७० पूर्व हुमा हुना, यह श्वेताम्बरों की मान्यता है, किन्तु दिगम्बरों, के शास्त्रानुसार वह काल ६०५ वर्ष पूर्व माना जाना चाहिए । यह दिगम्बर मान्यता श्वेताम्बरों को मान्यता में १३५ वर्ष पूर्व निर्वाण को बताती है । ईसवी सन से ५७ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् माना जाता है । इस अपेक्षा महाबोर निर्वाण संवत् ईसवी सन् से (६०५+५७ =६६२ वर्ष) ६६२ वर्ष पूर्व माना जाना चाहिए । इस प्रकार सन् १९६८ में वोर निर्माण सबत् १९६८ |-६६२-२६३० वर्ष पूर्व मानना चाहिए। प्रचार में जो वीर निर्वाण २४६४ माना जाता है, वह श्वेताम्बर परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है । डाजैकोबी ने कहा है-"The trildtional date of Mahabira's nirvana is 470 years before vikrama according to toe Sweta. mhcras and 605 according to the Digambores."
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर का निर्वाण विक्रम से ४७० वर्ष पूर्व हुआ था तथा दिगम्बर परम्परा के अनुसार उनका निर्वाण विक्रम से ६०५ वर्ष पूर्व हुमा था।
अपने ग्रन्थ शिलालेख संग्रह में (Rice) नाम के विद्वान् विक्रम का समय महावीर के निर्वाण के ६०५ बर्ष बाद मानते हैं।
अत: दिगम्बर जैन आगम के अनुसार प्रचलित वीर निर्वाण का २४६.५ में १२५ जोड़ने पर २६३. वीर निवास मानना सुसंगत होगा।
विहार शासन द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में लिखा है कि महावीर भगवान के निर्वाण का काल अभी विवादास्पद यह सभी तक निर्णोत नहीं हो पाया है। स्वयं जैन परम्परा इस विषय में एक मत नहीं है। The date of thedase Mahavira is matter of controversy and is not yet definitely fixed. Even jain tradition itseifis not unanimous about." (P. 178)
भगवान के निर्वाण काल निर्णय से या निर्वाण क्षेत्र के विवाद से उनकी मुक्ति को स्थिति को कोई बाधा नही पानी है। उन पूरुषार्थी महान आत्मा ने कर्मों का क्षय करके जो सिद्धि प्राप्त की है, वह बिनाश रहित है। सादि होते द्वारा हैं उन पूज्य प्रात्मा ने अनादि बद्ध कर्मों का अन्त करके अनन्त' शान्ति तथा अविनाशी प्रानन्द को प्राप्त किया। पुण्य स्मरण भी पतित प्रात्मा का उद्धार करता है तथा उसे संकटों से विमुक्त बनाता है।
तिलोयपण्णत्ती। पेज नं. ३८० वीससहस्स तिसदा सत्तारस बच्छराणि सुदतित्थं ।
धम्मपयट्टणहेदू वोन्छिस्सदि कालदोसेणं ।।१४६३।। २०३१७॥ अर्थ:-जो श्रुततीर्थ धर्मप्रवर्तन का कारण है, वह बीस हजार तीन सौ सत्तरह वर्षों में काल दोष से व्युच्छेद को प्राप्त हो जाएगा ॥१४६३।।२०३१७१,
वीरजिणे सिद्धिगदे चउसदइगिसट्रिसपरिमाणे ।
कालम्नि अदिक्कते उप्पण्णो एत्थ सकरात्रो ॥१४६६॥४६१॥ अर्थ :-वीर जिनेन्द्र के मुक्ति प्राप्त होने के पश्चात् चार सौ इकसठ वर्ष प्रमाण काल के व्यतीत होने पर यहां एक राजा उत्पन्न हुमा । १४६६।।
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