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धरम चक्र पालक प्रत जास, षट जेवा षोडश उपवास । बहद धर्मचक्र हि ब्रत धर, दशस दस दिन मोकल कर ।।५।। जिनगुणसंपति छयाराह दीप, प्रोषध छत्तिस पारन तीस । लघु जिनगुण-संपत्ति प्रेसद्द, कर एकांतर पूज प्रमठ ॥८६॥ सुख संपति दिन इकइस वीस, पूनौ मावस वाटीस । तर पान हौ पुरत हो, जुन अन सुखसंपति वतजोइ ॥८॥ दिन विशोत्तर वृष दश करै, पून्यौ चा मावस धरै । रुद्र वसंत जु चालिस दिना, पंतिस प्रोषध पन पारना ॥८॥ शील कल्यान एकसं असी, करें पोषलौं प्रोषध जसी । इकसय बीस पंचकल्याण, प्रोषध जिन कल्यानक ठान ।।८।।
इन्द्रकल्यान दिवस पच्चीस, पंचपंच दिन ब्यौरो दीस । प्रोषध कांजिक एकल ठान, रुक्ष अनागार पहिचान ।।801 धुतकल्याण वही विधि धार, श्रुत हि पठन कर लेइ अहार । लघु कल्याण वतहि दिन पंच, एक-एक दिन बहुविध संच ।।११|| मध्यकल्याण जु तेरह दिना, आदि अंत है पोषध गिना । एकलि चार कंजिका तीन, रूक्षरू अनाहार द्वय दीन 18२॥ श्रुतस्कन्ध व्रत जब पादरी, तोस दिवस एकांतर करै । पंचहि धत जान हि प्रत सार, कर उपवास निरंतर धार ॥१३॥
ध्व.नके साथ प्रभने बिहार करना प्रारम्भ किया। अनेकों ध्वजा-पताका एवं छन्न इत्यादि से सारा आकाश-मंडल ढक सा गया। देववृन्द चारों ओर से जय ध्वनि करने लगा हे ईश, आप सम्पूर्ण भव्य जीवों के महाशत्र मोह को जीत और जयवन्त कहलायें । प्रभा, आपकी वृद्धि हो और आनन्द को प्राप्त करें। इसके बाद प्रभु विहार करने लगे और सब सुर असुर इत्यादि के साथ मध्यमें तेजस्वी सूर्य के समान शोभायमान हुए। प्रभु के स्थान से लेकर सौ योजन पर्यन्त सम्पूर्ण दिशामों में प्रत्यन्त सुकाल था। सातों प्रकारसे भयों का कहीं छाया मात्र भी दष्टिगोचर नहीं होता था। अहंन्त प्रभु अनेकों देश पर्वत, नगर एवं नदी
के लिये बहुत जोर दिया परन्तु उनकी दष्टि गं तो संसार भयानक और दुखदासी दिखाई पड़ता था उन्होंने कहा कि क्षणिक संसारी सुखों की. ममता में अविनादी सुखों के अवसर को क्यों खोऊँ । बह भ. महावीर के समवशरण में जाकर जैन साधु हो गये ।
शालिभद्र पर वीर प्रभाव
राजगृह के सबसे बड़े व्यापारी शालिभद्र ने आनन्दभेरी सुनी तो भगवान महावीर के आगमन को जानकर उसका हृदय आनन्द से गदगद करने लगा और तुरन्त भ० वीर के दर्शन के लिये उनके समवशरण में पहुंचा और उनसे पिछले जन्म का हाल पूछा तो भगवान की दिव्य ध्वनि खिरी जिसमें मुनाई दिया कि तुम पिछले जन्म में बहुत दरिद्री थे, पड़ोसी के घर खीर बनते हुए देखकर तुमने भी अपनी माता से खोर बनाने के लिये कहा भगर अधिक गरीब होने के कारण वह दूघ आदि का प्रबन्ध न कर सकी। गांव के लोगों ने तुम्हारी जिद को देखकर खीर बनाने की सारी सामनी जुटा दी। माता तुमको परोसनेवाली ही थी कि इतने में एक जन साधु, आहार निमित्त उधर आ गये। तुम भूल गये इस बात को शिबड़ी कठिनाइयों से अपने लिये स्वीर तैयार कराई थी तुमने मुनिराज को पड़गाह मिया और उस शारीखीर का आहार उनको करा दिया और स्वयं भूगे रहे। मुनि आहार के फल से इस जन्म में तुम इतने निरोगी भाग्यशाली हुए हो कि करोड़ों की सम्पति तुम्हारी ठोकरों में फिरती है। शालिमा यह विचार करके कि थोड़े से त्याग रो इतन अधिक संसारी मुख सम्पत्ति मिली तो इन संसारी क्षणिक सुखों के रयाग से मोच का सच्चा सुख प्राप्त होने में क्या संदेह हो सकता है ? आप जैन मुनि हो गये।
महाराजा श्रेरिपक ने अगने राज्य के सबसे बड़े सौदागर को मुनि अवस्था में देखा तो उनसे पूछा कि आपने करोड़ों की सम्पत्ति एक क्षण में कैसे लाग दो मुनि शालिभद्र ने उत्तर दिया "अब तक मैंने जो सौदे कि उसका केवत इस एक जन्म ही में सुख प्राप्त हुआ, परन्तु जो मौदा आज किया है उसका सुख सक्ष के लिये प्राप्त होगा।
अर्जुनमाली पर वीर प्रभाव राजगह के नगरसेठ सदर्शन बोरवन्दना को जाने लगे तो उनके पिता ने वाहा, "अर्जुनमाली महादुष्ट है। लः पुरुष और एक ली तो नियम से बह प्रत्येक दिन मार ही डालता है। तुम यहां से ही भ० वीर को नमस्कार कर लो, बह तो सर्वश है, यहाँ सकी हुई बन्दना को भी वह अन ज्ञान से जान लेंगे" । सुदर्शन ने कहा मरना तो एक दिन है ही, फिर इसका भय क्या ? ।
सुदर्शन राज गृह मे थोड़ी दूर ही बाहर निकला था कि अर्जुनमाली भूधे शेर के समान झाटा और अपना मोटा मुद्गर मारने को उठाया परत वीर भगवान की भक्ति के फल से बन देव ने उसके हाथ कील दिए। अर्जुन बड़ा शक्तिशाली था उसने बहुत यल किए,परन्तु कुछ वेश
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