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पूजत जिनराज पाय ग्रष्ट द्रव्य शुद्ध लाय । पातक निर नाश मोख पंथ परम पावनी ॥ भवदधि संसार पार तुम हो उद्धरबहार भव्यति सुख करनहार धर्म वोज भावनो । तुम ही गुरु तीन करो उप देत पोर वंदना हनी ॥ जे जे जिन जगत फद काटत भ्रमजाल फद । आपदा निवार सर्व सर्व दोष दुःखदाहिनी ॥५१॥ नेत्र माज सुफल होइ चरनकमल प्रभुहि जइ । मस्तक है हस्त सफल भये आज चरन जुग पद समाज मात्र सफल कियी सर्व गम्पोदक पर्श धर्म जं जै जिन जगत फंद काटतभ्रम जाल फंद
सफल जास नम नखन सफल भयौ मुक्ख मोहि अस्तुति कर बृहत संसार सिन्धु भविस तास यापदा निवार सर्व दोष दुःख
अग्रनी ॥ पावनी ॥ तारनी ॥
दाहिनी ॥ ५२ ॥
हे प्रभु, आपके पुनीत विहार (धार्मिक भ्रमण) के कारण अनेकों मध्यजीव तप रूपी तलवार के द्वारा सांसारिक स्थितिको छिन्न-भिन्न करके सुख समुद्र मोक्ष की प्राप्त होंगे। घनेकों योगी आपके उत्तम धर्मोपदेश से चरित्र पालन में तत्पर होकर ग्रहमिन्द्र पद को प्राप्तकर लेने में और अनेकों सोलह स्वर्ग में जायेंगे। हे भगवान्, संसार के कितने ही मोह एवं पाप परायण जीव थापके उपदेशसे उत्तम पत्र पर पारू हो जायेंगे और फिर मोहरूपी शत्रु का नाश करने में प्रवृत्त होंगे। अन्यजीवों को
और तत्काल ही सारे नगर में आनन्द-भेरी बजाने की आजादी और इतना दान किया कि उसके राज्य में कोई भी निर्धन नहीं रहा । भेरी के पद कर प्रजा दर्शनों के जिले वाचल पर्वत पर जाने के वास्ते राजमन में इकट्ठी हो गई। चतुरंगी ऐना रुजे हुए घोड़े, लम्बे दांतों वाले हाथी, सोने के रथ, भांति-भांति के बाजे, असंख्य योद्धा प्यादे, और शाही ठाट-बाट के साथ अपने राज परिवार सहित महाराज श्रेणिक विम्बसार वीर भगवान की वन्दना को बने ।
महावीर को पदार्थ
जब समवशरण के निकट आये तो श्रेणिक ने राज चिन्ह छोड़कर बड़ी विनय के नमस्कार किया और उनकी स्तुति करके अत्यन्त बिनय के साथ पूछा रूप से प्राप्त होने पर भी हे वीर प्रभु! आप ऐसी भरी जवानी में क्यों ना भूल है कि जिस प्रकार कुत्ता हड्डी में सुख मानता है उसी प्रकार संसारी जीव क्षण भर के में सुख हो तो रोगी भी भोगों में आनन्द माने । वास्तव में सच्चा सुख भोग में नहीं बल्कि त्याग में है। इच्छाओं के त्यागने के लिये भी शक्ति की आवश्यकता है । शक्ति जवानी में ही अधिक होती है इसीलिये विषय भोगों, इन्द्रियों और इच्छाओं को वश में करने के लिये जवानी में ही जिनदीक्षा लेनी उचित है" ।
साथ पैदल ही समवशरण में पहुंच कर भगवान् कि "राजगुख और उपयोग के समस्त हुए" ! उत्तर में गुना "राज? लोक को यही तो इन्द्रिय सुखों में आनन्द मानता है । यदि भोगों
महाराज श्रेणिक ने पूछा- किराया को मांसाहारी, हनुमान जी को बानर और श्री रामचन्द्र जी जैसे धर्मात्मा को हिरा का शिकार करने वाला कहा जाता है, यह कहां तक सत्य है ? उत्तर में गुना - " रावण राक्षस व मांसाहारी न था बल्कि जिसने हिंसामयी यज्ञ करने का विचार भी किया तो युद्ध करके उसका मान भंग कर दिया। हनुमान और सुग्रीव वास्तव में वानर न थे, बानर तो उसके वंश का नाम था । रामचन्द्र ने कभी हिरण का शिकार नहीं किया तो महापुरुष थे।
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श्ररिक ने फिर पूछा, कि सीता जी को किस पाप के कारण रामचन्द्र जी ने घर से निकाला और किस गुण्य के कारण स्वर्ग के देवों ने उनकी सहायता की ? उत्तर में सुना "सीता जी ने अपने जन्म में सुदर्शन नाम के एक जैन मुनि की झूठी निकी भी जिस कारण उसकी भी झूठी निन्दा हुई | बाद में अपनी भूल जानकर उन्होंने उनसे क्षमा मांग ली थी जिसके पुण्य फल से देवों ने सीता जी का अपवाद दूर करके अग्नि कुण्ड जलमय बना दिया था ।
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रिंक ने फिर प्रश्न किया कि युधिष्ठिर भीम और अजून ऐसे योद्धा और वीर किस पुण्य के प्रताप से हुए और द्रोपदी पर पांच पुरुषों की स्त्री होने का कलंक किस पाप के कारण लगा ? उत्तर में सुना - " चम्पापुर नगरी में सोमदेव नाम का एक बहुत गुणवान् श्राह्मण था । उसकी स्त्री का नाम सोमिला था उसके तीन पुत्र सोमदत्त, समिा और सोमभूति थे। सोमिला के भाई अग्निभूति के धनश्री मित्रश्री और नागश्री नाम की तीन पुत्रियाँ थी । सोमदेव के तीनों लड़कों का विवाह ट्रेन तीनों लड़कियों से हुआ। सोमदेव संसार को असार जनकर जैन मुनि हो गया था, तीनों लड़के और सोमिला श्रावक धर्म पालने लगी। धनश्री और मित्रश्री श्री जैन धर्म में थद्वान रखती थी, परन्तु नागश्री को यह
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