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षोडश अधिकार
मंगलाचरण
दोहा मोहि नींद नाशन उदय, ज्ञान सूर्य जिन राय । विश्व तत्व दीपक नमौं, भव्य कमल बिकसार ॥१॥
विहार के लिये इन्द्र की भगवान से प्रार्थना करना।
चौपाई अब सौधर्म इन्द्र बुधवान, हरषवंत प्रनम्यो भगवान। भक्ति सहित प्रस्तुति प्रारम्भ, निजहित कियौ परम गुन दंभ ।।२।। तुम तीर्थकर जगत महेश, पर उपकार करन परमेश। कीजै आरज खंड विहार, भव्य पुरुष सम्वोधन सार ।।३३५ तुम प्रभ तीन जगत परवीन, निर्मल गुणसागर सम लीन । केवल ज्ञान चराचर साथ, वचन सुधाकर करहु सनाथ ।।४॥ प्रभ अब कीजे परम विहार, प्रारजखंड सम्बोधन धार । विश्व तत्व जिमि होय प्रकाश, भविजन के संशय अघ नाश ॥५॥ तुम उपदेश भव्य जिम लहै, भवथिति हुन खडग तप गहै। होय मोक्षपद निहचं तेह, सुखसागर जु अनन्त लहेह ।।६।। कोई पावे पद अहमिन्द्र, भोगे सागर थिति सुख बृन्द । तुम उपदेश धर्म सुन कोइ, बमैं पाप मिथ्यातम सोइ ।।७।। तातै प्रभ अब करहु विहार, धर्म अनुग्रह होइ अपार । भव्य मोक्षमारग जिमि लहैं, अर मिथ्याती समकित गहैं ।।८।। बहुविध शक करी थुति घनी, कीजै गमन भाग जग तनी । वार वार परशंसा कीन निज कृति कर्म करै इमि हीन ।।९।।
भगवान के विहार का वर्णन तब प्रभु तीन जगत गुरु राय, कियो विहार जगत हित ल्याय । मिथ्यामद इमि चल्यो पलाय, ज्यों रवि उदै तिमिर नशि जाय ।। गमन समय औरहि विधि भई, समाशरण रचना खिर गई। जहं थिर होइ किमपि फिर जाइ, छिनमें तहां रच धरनाइ ॥१॥ द्वादश सभा संग मिलि चलें, जय जय घोप करत जहं भले । नभ में गमन कर सब मोइ, बारह कोटि पटह ध्वनि होइ ॥१२॥ छत्र चमर सुर बरहि सम्हार, ध्वजा पंक्ति कर लिये अपार । विहर भव्यन हित भगवान, अन इच्छापूर्वक उर पान ॥१३॥ समोशरण प्रभ जहं थिर होइ, ईति भीति व्यापै नहि वोइ । सौ जोजन के गिरदाकार, तहं सुरभिक्ष लहै अधिकार ||१४|| वीरज प्रादिक अति कृषि होय, सकल नाज उपज क्षिति सोय । सूखे पर जे जलकर पूर, फूल अंबुज अति तहं भर ।।१५।।
ज्ञान-ज्योतिसे मोहको दूर करें जो नाथ । भव्य कमल विकशित करें करके मुझे समाथ ।। इसके बाद जबकि उपदेशके बाद दिव्यवाणीको विश्राम मिल गया और जीवोंक। कोलाहल शान्त-सा हो गया, तब गणवान और बुद्धिमान सौधर्म इन्द्र श्रद्धा-भक्ति पूर्वक अपनी अभीष्ट प्राप्तिकी इच्छासे महाबीर प्रभुकी स्तुति करने लगा। वे महावीर स्वामी तीनों भव्य जीवोंके मध्य में विराजमान थे और सम्पूर्ण प्राणियों को सावधान करने में प्रवत्त थे। इन्द्रने रानियों की उपकार साधनाकी इच्छासे और अन्यत्र भी धर्मोपदेश करने की प्रेरणा करते हुए जगन्ध महावीर प्रभ की स्तति करना प्रारम्भ किया । हे देव, मैं अपने मानसिक वाचनिक और कायिक शुद्धिके लिये स्तुति कर रहा हूं। आप अनन्त गुणोंके सागर