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न होकर एक द्वीप के अन्तर्गत दो वर्ष या क्षेत्र हैं। साथ ही मेरु को मेखलित करने वाला, सप्तद्वीपिक भूगोल का इलावृत भी। एक स्वतन्त्र वर्ष बन गया है। ७. यों उक्त चार द्वीपों से पल्लवित भारवर्ष प्रादि तीन दक्षिणी, हरिवर्ष आदि तीन उत्तरी, भद्राश्व व केतुमाल ये दो पूर्व व पश्चिमी तथा इलावत नामक केन्द्रीय वर्ष जम्बूद्वीप के नौ वर्षों की रचना कर रहा है। . (जैनाभिमत भुगोल में है की बजाय १० वर्षों का उल्लेख है। भारतवर्ष किंपुरुष व हरिवर्ष के स्थान पर भरत हेमबत व हरि ये तीन मेरू के दक्षिण में हैं। रम्यक, हिरण्यमय तथा उत्तर कुरु के स्थान पर रम्यक हरण्यवत व ऐरावत ये तीन मेरु के उत्तर में हैं। भद्राश्व व केतुमाल के स्थान पर पूर्व विदेह व पश्चिम विदेह ये दो मेरु के पूर्व व पश्चिम में हैं। तथा इलावत के स्थान पर देवकूरु व उत्तरकुरु ये दो मेरु के निकटवर्ती हैं। यहां वैदिक मान्यता में तो मेरु के चौगिर्द एक ही वर्ष मान लिया गया
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नोट:-
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और जैन मान्यता में उसे दक्षिण व उत्तर दिशा वाले दो भागों में विभक्त कर दिया है। पूर्व व पश्चिमी भद्राश्व व केतुमाल द्वीपों में वैदिकजनों ने दोत्रों का विभाग न दर्शाकर अखण्ड रक्खा, पर जैन मान्यता में उसके स्थानीय पूर्व व पश्चिम विदेहों को भी (१६, १६ क्षेत्रों में विभक्त कर दिया गया) ६. मेरु पर्वत वर्तमान भूगोल का पामीर प्रदेश है । उत्तरकुरु पश्चिमी तुर्किस्तान है। सीता नदी यारकन्द नदी है।
निषध पर्वत हिन्दुकुश पर्वतों की श्रृंखला है। हैमवत भारतवर्ष का ही दूसरा नाम रहा है। (दे० वह-बह नाम)। लोक सामान्य निर्देश
१. लोक का लक्षण दे०काश २३ (१.पाकाश के जितने भाग में जीव पुदगल आदि षट द्रव्य देखे जांय सो लोक है और उसके चारों तरफ शेप अनन्त माकाश अलोक है, ऐसा लोक का निरुक्ति अर्थ है। २. अथवा षट् द्रव्यों का समवाय लोक है)।
दे० लोकान्तिक ।। (२. जन्म-जरामरण रूप यह संसार भी लोक कहलाता है।)
रा, बा. ११२११०-१३१४५५।२० यत्र पुण्यपापफललोकनं स लोकः ।१०। कः पूनरसौ। पात्मा । लोकति पश्यत्युप लभते प्रनिति लोकः ११११ सर्वज्ञेनानन्ताप्रतिहदकवलदर्शने लोक्यते यः स लोकः । तेन धर्मादीनामपि लोकत्वं सिद्धम् ।१३जहां पूण्य व पाप का फल जो सुख-दुःख वह देखा जाता है सो लोक है इस व्युत्पत्ति के अनुसार लोक का अर्थ प्रात्मा होता है। जो पदार्थों को देखे व जाने सो लोक इस व्युत्पत्ति से भी लोक का अर्थ प्रात्मा है। प्रात्मा स्वयं अपने स्वरूप का लोकन कर