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पाप प्रगट जगमें दुखखान, निश्चय दुर्गतिदायक जान। गहै पंच मिथ्यात्व निवर, चार कषाय असंजम पूर ।।१११॥ सकल प्रमाद जोग थिर थाय, सप्त व्यसन धारं अधिकाय । आठौं मद गर्वित द्रग अंध, शंकादिक वसु मल अब बंध ।।११२॥ निशदिन सरन्यन अंग दुरखेडया दुर्ब वि विस्तरै। कूगुरु कुदेव सेव अति करै, यह बिधि पाप अनुग्रह धरै ॥११३|| कुटिल कृपण पर धन हर लेइ, राग द्वेष लंपट अधिकेइ । भुल्यौ क्रोध मोहवश पाय, निर्विचार निर्दय दुखदाय ॥११४॥ पर निन्दा निज करै प्रशंस, बचन असत्य कहै तजि संश। करै कुग्रन्थ तनी अभ्यास, निज श्रुत को दूर्य कर हास ।।११५|| करै अक्रिया दुरधर दीन, पूजा दान क्रिया कर हीन। कूर करम बांधे राठ एम, जाने नहीं प्रातमा नेम ।।११६।। शील आचरण तप व्रत बिना, भवसागर दुख जाय न गिना । कर पापसौं अशुभ उपाय, इहि विधि धरै नरक पर जाय ।।११७॥ प्रथम मादि सप्तम परजंत, लहै दुःखते दुःख अनन्त । छिनक एक तह सुख को नाश, दुख बैसांदर घृत परकाश ।।११८।। मायावी अति कुटिल सु भ्रम्यौ, निशि भक्ष परनार सुरम्यो। मूरख महा कुमति श्रुत धरै, पशु अरु वृशहि सेवा करै ॥११॥ नित्य कर असनान प्रभात, भाव प्रशुद्ध प्रगट अवदान । जात कृतीरथ को अवगान, जिनवर धर्म वहिर्म ख ज्ञान ।।१२०।। महा कुशीली प्रवत जोत, लेश्या जिनको सदा कपोत । इत्यादिक सब पाप संजोग, मानत मुद कर्म रस जोग ।।१२। आरत ध्यान मरण जब करें, गति तिरजंच जाय अवतरं। सहै दुःस्व बहुकाल प्रजंत, को कवि वरन लहै नहि अंत ||१२२॥ तीर्थकर सतगुरु गुनवंत, ज्ञानी धर्म नतो मुनि संत । महातपोधन चारित्र धनी, सेबा भक्ति कर तिन तनी ॥१२॥ शुद्धाशय जिन गुण अधिकाय, श्रीजित गुरु सेवा उरल्याय । इत्यादिक शुभ पुण्य उपाय, प्रारजखण्ड मनुष पद पाय ॥१४॥ उत्तम पद पावै सो तहां, राज्य विभूति सुख्य अति जहाँ । तह ते तप करक शिब सधै, अरु पुन तीर्थकर पद बंध ।।१२५॥
परधन की कामना करने वाले हैं बहुत अधिक कार्यों को प्रारम्भ करने में जिनका उत्साह रहता है, अतुल सम्पत्ति एकत्रित करने के प्रयत्नमें लगे रहते हैं, निन्दनीय कार्यों को किया करते हैं, अवांछनीय स्वभाव के हैं, दुष्ट प्रकृति एवं ऋर हृदय होते हैं जिन के चित्त में क्या नहीं होती है सदैव बीभत्स एवं रौद्र वस्तु के ध्यान में लीन रहकर विषय रूपी मांसके लिये लोलुप है, जैनमत के निन्दक हैं जिनदेव, जिनधर्मी (जैनी) एवं जैन साधुओंके प्रतिकल रहते हैं मिथ्याशास्त्रों के अभ्यास में तत्पर रहते हैं, मिथ्यामत के घमण्डमें उद्दण्ड हो गये हैं। कुदेव या कुगुरु के भक्त हैं कुकार्य तथा पापों को प्रेरणा करने में तत्पर रहते हैं दुर्जन हैं, अत्यन्त मोह से युक्त हैं पाप कर्म में पण्डित यानी धूर्त है धर्मद्वेषी, दुःशील, दुराचारी सब प्रतों से परांमुख कृष्ण लेश्या रूप परिणामों से यक्तः पाच महापापों के करने वाले तथा इसी तरह के और भी अन्याय बहुत से पाप कर्मों को करने वाले हैं वे ही पापी कहे जाते है और पाप कर्मों से उत्पन्न पापोदय के कारण रौद्र ध्यान से मरकर पापियों के गहरूप नरक में जाते हैं। पापकर्मों के भीषण फलों को देनेवाले सात नरक हैं। वे सम्पूर्ण दुःखोंके खजाना है वहां अर्धनिमेष (माधी सेकेण्ड) मात्र भी सुख नहीं प्राप्त हो सकता। जो भव्य जीव मायावी अत्यन्त कुटिल करोड़ों कमोंके करने वाले, परधनापहारी अष्टायाम भोजी (पाठों पहर खानेवाले) महामूर्ख, मिथ्याशास्त्रोंके ज्ञाता, पशु-बक्षोंके सेवक प्रतिदिन प्रधिकवार स्नान करने वाले शुद्ध होने की अभिलाषा से कृतीर्थों को यात्रा करने वाले जिन-धर्म को नहीं मानने वाले व्रत एवं शील इत्यादिसे हीन अत्यन्त निन्दनीय कपोत लेश्यावाले सदैव अर्तध्यान करनेवाले तथा प्रन्यान्य नीच काँमें प्रीति. रखने वाले अज्ञानी जीव अन्त में दुःखको प्राप्त होकर प्रातध्यान से मरते हैं और तिर्यञ्चगति (पशुगति) को प्राप्त करते हैं। पशुगति अति उग्र सम्पूर्ण दुःखों की खान है यायु कर्म होने के कारण जल्दीजल्दी जन्म-मरण होता रहता है और एकदम पराधीन है वहाँ सुखका लेश भी नहीं है। जो जीव नास्तिक हैं दराचारी हैं परलोक धर्म तप चारित्र एवं जिनेन्द्र शास्त्र आदिको नहीं मानते दुर्च द्धि अत्यन्त विषय-वासनाओं में प्रासक्त एवं उन मिथ्यात्वसे युक्त अज्ञानी हैं वे अनन्त दुखों के अपार सागर निगोद में जाकर उत्पन्न होते हैं और वे वहाँ पर अपने दुष्ट पापोंके उदय होने से बचन के द्वारा जन्म-मरण रूपी अनिर्वचनीय भीषण दुःखोंको चिरकाल तक भोगते हैं।
जो जीव तीर्थकर को, थंष्ठ गुरुओं की; ज्ञानियों की एवं धर्मात्मा महात्मानों की श्रद्धाभक्ति पूर्वक सेवा एवं पूजा सदैव करते हैं; महावतोंका, अहंत देव' एवं मिग्रन्थमुरुकी प्राज्ञानोंका तथा सम्पूर्ण अणुबतों का पालन किया करते हैं, अपनी शक्ति के अनुसार बारह तपोंको करते हैं, कषाय एवं इन्द्रिय रूपी अपराधी चोरों को समुचित दण्ड व्यवस्था में तत्पर एवं जितेन्द्रिय होकर पात रौद्र ध्यानों का परित्याग कर देते हैं तथा धर्मरूपी गुक्ल ध्यानों के चितन में प्रयत्नशील रहते हैं, शुभ लेश्या परिणाम
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