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दोहा नरक सातके जानिये, पटल सकल उनचास । परज अपज अंठान, जो समास प्रकाश ॥३३२।।
चौपाई
भोगमिया तीन विधान, उत्तम मध्यम जघन बखान । चौथे कुभोग भमिनर थान, पांचौ मलेच्छ खंड पहिचान परज अपर्ज दसों ठहराय, प्रारज खंड सुनी यब भाय । परज अपर्ज अलब्धि ज तीन, ए तेरह नरगति में लीन ३३४
दोहा गर्भज पर्ज अपर्ज दुइ, सन्मन नहि लब्ध । तिन उतपति भविजन सुनौ, यह संसार भवाब्ध ॥३३५।।
अडिल्ल नार जोनि कुच नाभि कांख में पाइये । नर नारी के मत्र मांहि ठहराइये। मरदा में गन्मर्छन सैनी जीयरा। अलवधि परजापते दयाधर जीयरा॥२३६।।
नारर जोनि जुन नाभि काल में पायो । नर नारी के मन्त्र माहि लहराइये ।..
दोहा वेशठ पटल ज स्वर्ग के, भवनपति दश जान । व्यन्तर पाठ प्रकारके, ज्योतिष पंच प्रमान ॥३३७|| भय छियासी थोक सब, पज अपर्ज गनेह । शतक बहत्तर सूर असुर, जीवरामास भनेह ॥३३८।। इकसै छयासी पर्ज नित, तितनै अपरज सोय । अलबध जिय चौतीस है, चउसय पट सब होय ॥३३॥ नियत एक चेतनमई, भद सरब व्यवहार । निश्चय अरु व्यवहारको, जाननहारा सार ।।३४०।।
पर्याप्ति प्ररूपण
चौपाई
परजापति षटके कहि नाम, आहार प्रथम छायौ अभिराम पुनि शरीर धार जग जीव, दूजी परजापति धरि लीव ॥३४१||
दियको भेद ज लहै, तीजी परजापति संग्रहै । श्वास उस्वास धर पुन तहाँ, चौथो परजापति सो गहा ||३४| ते जब जीव सुजान, परजापति पंचम परवान । भाषा लहि भरपूर जु सोय, छट्ठम परजापति तब होय ।।३४३॥ जापति कही मुनीश, इन बिन अपरज जीव गनीश । जो परजापति पाय विनाश, स अलब्ध परजापत भास ॥४४॥
प्राण प्ररूपण
इन्द्रिय पांच मन वच काय, श्वास उस्वास ज बल पुन पाय । इन ही सी कहिये दश प्राण, जानी जीव तनों संस्थाण ॥४५॥
संज्ञा प्ररूपण अब सुन संज्ञा चार प्रकार, भय मैथुन परिग्रह आहार । इनमें जीव' रह्यो है भूल, प्रातम शक्ति विना जग तूल ॥३४६।।
स्वभाव होनेके कारण उनका नाम सार्थक है। साधारणतः पुद्गलके अणु और स्कन्धरूप दो भेद हैं इन दोनों में जो कि अविभागों है वह अणु कहा जाता है और स्कन्धके तो अनेक भेद हैं। अथवा वहीं पुद्गल सूक्ष्म-सूक्ष्म भेदसे छ: प्रकारके हो जाते हैं। उनमें से परमाणु रूप एक तो सूक्ष्म-सूक्ष्म है जो नेत्रोंसे नहीं देखा जा सकता । पाठ द्रव्य कर्मरूप पुन्दल स्कन्ध सूक्ष्म पुद्गल हैं। शब्द, स्पर्श, रस और गंध सूक्ष्म स्थूल पुद्गल हैं । छाया, चांदनी, धूप इत्यादि स्थूल सूक्ष्म हैं। जल अग्नि इत्यादि बहुतसे स्थूल पुद्गल हैं। पृथ्वी, विमान, पर्वत गृह इत्यादि स्थूल-स्थूल पुद्गल हैं। ये पुद्गलके छ; भेद हुए। स्पर्शादि बीस निर्मल गुण परमाण
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