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जियो और जीने दो भगवान महावीर स्वामी ने अपने शुभ सन्देश में कहा है कि संसार के समस्त प्राणी जने की इच्छा करते हैं और सभी सुख शान्ति चाहते हैं। इसलिए आत्मवत् सर्व भूतेष यः पश्यति स पंडित:" इस उक्ति के अनुसार उन्होंने कहा है कि मानी प्रात्मा के रामान सभी को समझो और किसी को भी दुःख मत दो। यही सच्ची अहिसा है और यही भगवान महावीर स्वामी का सभी जीवों के लिए कल्याण कारक सदुपदेश है।
___ धर्म क्या और क्यों है । भगवान महावीर स्वामो का धर्म प्रारम-धर्म है । वह आत्मा के अस्तित्व से जुड़ा हमा है। धर्म-आत्मा मे बाहर कहीं नहीं है इसलिए वह प्रात्मा से अभिन्न भा है और आत्मा के अनन्न गुणों में से एक मुण है।
मात्मा जब वेवल प्रात्मा हो जाती है-शरीर वाणी पोर मन से मुक्त हो जाती है. तब उसके लिए न कुछ धर्म होता है और न कुछ अधर्म। भगवान की भाषा में समता ही धर्म और विषमता ही अधर्म है। राग और द्वेष यह विषमता है। गगन द्वंप-यह समता है और यही धर्म है । अहिंसा सत्य अनीयर्यादि जो गुण हैं वे व्यवहार रूप से व्यक्तित्व-विकास के साधन और निश्चय मे प्रात्मा-विकास के साधन कहे जाते हैं।
१. भगवान ने कहा है-इह लोक के लिए धर्म मत करो। वर्तमान जीवन में मिलने
वाले पौलिक सुखों की प्राप्ति के लिए घम मत करो। २. परलोक के लिए धर्म मत करो।आगामी जावन में मिलने वा ने पौद : लिक सुखों की
प्राप्ति के लिए धम मत करा ! ३, कोति प्रतिष्ठा आदि के लिए धर्म मत कर।। ४. केवल प्रात्म-शुद्धि या पात्मा को उपलब्धि के लिए धर्म करो।