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चौदा सहस देव मधि नमें, दूजी परिधि जुक्तकर नमै । निर्जर सहस जु षोडश लीन, तीजी परिधि इन्द्र कह दीन ॥३६॥ सुरपति निज रक्षक है सार, तीन लाख छत्तीस हजार । लोकपाल चारों सम चेत, धरै शक्र अाज्ञा दुर्गपाल नभपाल विशाल, लोकपाल लोकांतिक पाल । दश दिक पाल वी दिश जोय, याज्ञा इन्द्र घरै सुर सोय ॥३॥ पुरजन भत्य समान जु होय, किल्विष देव नीच तहं होय । दश प्रकार यह सभा प्रमान, शक्र संग शो कियो पयान ||३४|| दल सप्तांग संग सुरराज, सब उनचास अनीका साज । प्रथम बृषभ दल संख्या जान, सो बरनौं पागम परमान ॥४०॥ दिव्यरूप है बल' अति सक्त, सात अनीजूत धर वृषयुक्त । प्रथमहि चौरासी लख ठीक, तात दगुण दुतिय रमणीक ।।४।। तात दुगुण तृतिय देखना, ऐसे दुगुण दुगुण लेखना। सप्त अनीका गहै, प्रमान, नानावरण वृषभ के थान ।।४२॥ एक अरब छह कोड़ बखान, ऊपर अड़सः लाख प्रमान । वह सब सात वृषभ दल जोर, यह विधि लोजौ और बहोर ।।४।। अब तुरंग दल ऐसहि जान, सात अनीक तास बखान । रथ मणिमय अति तेज प्रकाश, सप्त अनीका कोनों जारा ॥४४॥ याही विधि गज मत्त वखान, सात अनीका है परवान। ऐसे ही पयदल जुगवत्त, सात अनीका है हिरवत्त ॥४५॥ दिव्य गीत गावें गत सात पीका मर गई। गर्जक सुर वादिन वजाय, सात अनीका जानी भाय ॥३॥
दोहा वृषभ आदि सप्तांग दल, दुगुण दुगुण विस्तार । एक एक प्रति सात मन, सब उनन्चास प्रकार ॥४७|| सात परब पहिचानिये, और छियालिस कोइ। लास्त्र छियत्तर अधिक सब, उनचास दल जोड़ ॥४६॥ बहुविध सुर साजी विभव, को बुध वरननहार। हरषभाव सव ही चढ़े, जय जय करत अपार ।।४।।
चौपाई सो सौधर्म इन्द्र मन रंग, सकल विभूति लई निज संग । ईशाने सुरधिप घर धर्म, अश्वारूढ़ भयो गुण पर्म ॥५०॥ है मृगेन्द्र वाहन सुरराज, सनत्कुमार सकल करि साज । बृषभ महेन्द्र कल्पके थान, चढ़ि चाल्यौ परिवार महान ॥५॥
अपने हाव-भावसे दर्शकोंका मन मुग्ध करती हुई, सुरीले गाना गाती, शृंगारादिके गानों से सबको प्रसन्न करती थी। ऐसे ऐरावत पर इन्द्र अपनी इन्द्राणी सहित विराजमान होने से प्रत्यन्त शोभायमान होने लगा।
वह इन्द्र श्री महावीर स्वामी को ज्ञान कल्याण की पूजाकै कारण पाया था, उसके अंग परके आभूषणों की शोभा बहुत ही दैदीप्यमान थी, गहनों के रत्नों की किरणों से वह तेज की खानि के सदृश मालूम होते थे । प्रतीन्द्र भी अत्यन्त विभूति के साथ अपनी सवारियों पर चढ़के परिवार सहित यह भी साथही साथ निकले। इसके अतिरिक्त अन्य इन्द्र के सदश साज सामान वाले सामानिक जातिके ८४ हजार देव निकलते हुए पुरोहित मन्त्री, अमात्यके समान तेतीस प्रायस्त्रिशत देव शभ प्राप्ति के लिये इन्द्र के साथ-साथ होते भये । आभ्यंतर पारिषद् १२००० देवोंकी थी। मध्यम सभा १४००० देवों की थी और वाद्य १६००० देवोंकी थी। इस प्रकार यह तीनों देव सभायें इन्द्र के चारों ओर घेरा डालकर बैठती हुई तीन लाख छत्तीस हजार देव शरीर रक्षक के रूपमें इन्द्रके पास पाये । कोतवालके सदृश लोकको पालने वाले चार लोकपाल देव इन्द्र के सामने आये । सात वषभोंकी सेनामें से पहिली सेनामें ८४ लाख उत्तम वृषभ (वैलरूप धारी देव) इन्द्र के आगे हुए दूसरी से लेकर सातवीं सेना तक में दुने-दने वृषभ (देव) सेनामें थे। इस तरह सात वृषभ सेनायें इन्द्रके सामने उपस्थित हो गई।
उसी तरह ऊंचे घोड़ोंकी ७ सेना माणि मई रथ, ऊंचे पर्वतकी तरह हाथी, जल्दी चलने वाले पैदल भगवान के गुणों को दिव्य कण्ठसे गाने वाले गन्धर्व जैनधर्म सम्बन्धी गीत, तथा बादित्रोंके लयके साथ नाचने वाली अपसरायें उसी साथ कक्षा वाले क्रमसे इन्द्र के प्रागे चलने लगीं। पुरवासियोंकी तरह प्रकीर्णक जाति के असंख्यात देव दास कर्म करने वाले प्राभियोग्य जातिके देव, अछतों जैसा काम करने वाले किल्बिषिक जाति के देव सौधर्म इन्द्र के साथ उस महोत्सव में सम्मिलित हए ।
ईशान इन्द्र घोड़े पर चढ़कर अपनी विभूति सहित भक्ति भावसे इन्द्र के साथ चलने लगा। सनत्कुमार सिंहकी सवारी
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