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दोहा
इहि विधि पारित आदरयी, अरु संजम उर धार क्षायिक सम्यक् दृढ धरी जय जय वीर कुमार ।। १३२ ।।
चीपाई मारगरि है उत्तम गास, कृष्णपक्ष दशमी तिथि जारा हस्त उत्तरा अन्तर माहि पपराहित वेला वह ग्रांहि ।। ११४ सब दीक्षा' जिनवरने परी, मुकतिवध मन इच्छा करी भूप एकसी प्रभु के संग, तप धारों तुजि परिषद् संग ॥ १३५॥
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तत्पर हो गये। यातापनादि योगसे उत्पन्न उत्तम उत्तर गुणोंको एवं महाव्रत समिति गुप्ति को उन्होंने धारण किया। वे सब समता को देखने लगे धीर सम्पूर्ण दोषों से हीन एवं सबसे श्रेष्ठ सामायिक संयम को उन्होंने स्वीकार किया। सन्तमें उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी तिथिके सायंकाल हस्त एवं उत्तर के मध्यबाने पुभ समय में दुष्प्राप्य जिन दीक्षा को ग्रहण किया। यह जिन दीक्षा मुक्ति रूपी कामिनी को सहचरी सखी के समान थी। स्वयं इन्द्र ने महावीर स्वामी के मस्तक में चिरकाल तक रहने के कारण परम पवित्र उनके केशोंको रत्न जटित मञ्जूषा (पिटारो ) में अपने हाथोंसे संवार कर रखा । फिर उन केशोंकी पूजाकी
"चीर-त्याग
कोई इटवियोगी जिससे कोसंबी कोई दीदी किसी पर विहारीना भी हो जो संसार
कोई तन का रोबो कोई तब ॥ मुल होता. तीर्थकर क्यों त्यागे काहे को शिव सधन करते, संयम सों अनुरागे ॥
-वर्ती श्री बानाभिः वैराग्यभावना
जहाँ रावण जंसा विद्याधरों का स्वामी एक स्त्री की अभिलाषा में तीन खण्ड का राज्य नष्ट कर दे, भीष्मपितामह के पिता जैसे वीर कामवासना के वश होकर एक मछिशरे की नीच जाति कन्या से विवाह करायें, जहां मगव देश के सम्राट श्रेणिक बिम्बतार के पिता उपश्रेणिक काम के वश होकर यमदण्ड नाम के जंगली मोल की पुत्री तिलकमती से विवाह कराले जहाँ विश्वामित्र ऋषि जैसे महा तपस्वी का तप मेनका जैसी साधारण स्त्री fठा दे वहां श्री वर्द्धमान महावीर कामरूपी अग्नि को वश करने में महावीर रहे।
भरत को जिस राज-पाट के दिलाने के लिए माता केकवी ने श्रीरामचन्द्रजी जैसे योग्य होनहार राजकुमार को चौदह वर्ष के लिए वनों में निकलवा दिया, जिस राजपाट की प्राप्ति के लिए दुर्योधन ने अपने भाइयों तक के साथ महाभारत जैसा भयानक युद्ध करके भारत के प्रतिपदा का अन्त कर दिया, जिस राजा की प्राप्ति के लिए बनवीर ने मेवाड़ के राणा उदयसिंह को मरवाने के लिए हजारों बन किये, जिस राजपाट के लिए मोहम्मद गौरी ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया, जिस राज-पाट की लालसा में सिकन्दर महान ने लाखों यूनानी दौरों को मरवा डाला, जिस राज-पाट के हेतु औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को बन्दीगृह में डाल दिया, उसी राज-पाट को श्री वर्द्धमान महावीर ने एक सच्चा अधिकारी और माता-पिता की अभिलाषा के बावजूद दम के दम में सहर्ष त्याग दिया ।
श्री वर्द्धमान महावीर ने जिन दीक्षा लेने से पहले अपने खजाने का मुंह खोलकर स्पष्ट आज्ञा दे दी थी कि अमीर हो या गरीब, जजोजी माने जाये, सुनांचे तीन अन्य अास करोड़ जानाति की अनाज आदि दान देकर उन्होंने जनता की सात पुस्तों तक की जरूरतों को पूरा कर दिया था।
खेत ( जमीन ) मकानात, चांदी, सोना, पशु-धन, अनाज, नौकरी, नौकरानी, वस्त्र, वर्तन, दस प्रकार की बाह्य तथा क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, श्ररति, शोक, भय, घृणा, स्रीवेद, पुरुषवेद, नवेद मियाय चौदह अंतरंग समस्त २४ परिग्रहों का त्याग करके २१२० दिन की भरी जवानी में सम्पूर्ण याद कर औरों से मुंह मोड़कर अपने आत्मोत् को साधने और दुखियों को मनी सेवा करने के लिए भी मान महावीर ने ईमोसन से ५२२ वर्ष पूर्व मंगसिर बदी दशमी के दिन संध्या सम चन्द्रप्रभा नाम की पालकी में बैठकर ज्ञातखण्ड नाम के वन में अपने सम्पूर्ण यन्त्र, आभूषण आदि उतार कर नग्न दिगम्बर होकर जैन साधु हो गये । उन्होंने अपने केशों का भी लौंच कर डाला और २६ सुलगुण ग्रहण करके पत्थर की शिला पर "ओम नमः सिद्धभ्यः कह कर उत्तर की और मुंह करके ध्यान में लीन हो गये। जिसको अपने अवधि ज्ञान से विचार कर स्वर्गी के देवों ने श्री वर्धमान महावीर का तप कल्याणक बड़े से मनाया। इसी ज्ञातखंड नाम के वन में तपस्या करते हुए उनको चौंथ प्रकार का मनःपर्षय ज्ञान भी प्राप्त हो गया था।
उत्साह
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