________________
तेरह पक्ष बीत जब जांय, तब उसास तनसों मुकलाइ । तोजी भूमि नरक की जान, ऋद्धि विक्रिया को परमान ॥१०॥ सप्त धातु मल स्वेद रहीत, निर्मल दिव्य शरीर पुनीत । सम्यक्दृष्टी हिये शुभ ध्यान, जिन पूजा में रक्त महान् ॥१०२॥ नत्य गीत बादित्र प्रशर, मधुर शब्द सुख के करतार । भुगते बहुत भोग परधान, निशदिन देवी सहित सुजान ॥१०॥ शुभ भावन युत मिथ्या हरै, विविध रत्नमण्डित सुख धरै । हर्षवन्त सुर सेवं पाय, अमृत सागर वहन कराय॥१०॥
दोहा याही प्रारज खण्ड में, कौशल देश विख्यात । अति मनोग्य अवध्यापुरी, बसें भविक अवदात ॥१०॥ बनसेन नप तस पती, पुण्यवंत गम्भीर । शीलवती तिय तास घर, शीलशालिनी धीर ।।१०।। देव मुरग सों सौ चयो, सुत उपजो हरिषेण । लक्षण भूषित पूर्ण वपु, दिव्यकान्ति जुत जेन ॥१०७॥
चौपाई
नात मात जत कूटम्ब समेत, पुत्र महोत्सब कीनों हेत । लहै पुण्यफल सुक्ख अनेक, कला बुद्धि गुण सहित विवेक ॥१०॥ जिन सिद्धान्त हिय नित धार, सकले पदारथ बेदक सार । सबहि संपदा पूरण पाई, विविध भोग भगत मन लाइ ॥१०॥
प कला तन तेज अपार, गुण गरिष्ठ नाना परकार । वरधै पक्ष मास अरु वास, देव समान लहै जस तास ।।११०11 क्रमसौं जीवन प्रापत भयो, बहुत राज तनुजा परिणयौ । लक्ष्मी सहित पिता पद पाय, भुगते सुख नानाम धिकाय ॥११॥ सम्यकदर्शन शंका जाहि व्रत निरमल पाले गृह माहि । धर्म गृहस्थ सिद्ध अनुसार, रहित प्रमाद तजै अविचार ||११२॥ ग्राट चौदश प्रोषध कर, सब सावध जोग परिहरै । उठे प्रात सामायिक देइ, प्रादि धर्मवधक सुख लेइ ।।११३॥
की आय तथा पांच हाथ का ऊंचा शरीर प्राप्त हुया। वे तेरह हजार वर्ष बाद हृदय में भरते हुए अमृतका सेवन करते थे और छह मासके पश्चात् सुगन्धित श्वास लेते थे, उनका अवधि ज्ञान और विक्रिया ऋद्धि नरक की तीसरी भूमि तक थी। वह देव सप्त-धातु मल पसीना रहित दिव्य शरीर वाला हुआ। वह सदा सम्यग्दृष्टि शुभ ध्यानमें तथा जिन पूजामें लीन रहता था। उसे देवियों का नृत्य गीत आदि सुख सामग्रियां उपलब्ध थीं वह शुभ भावनाओं का चिन्तन करने वाला तथा देवों द्वारा पूज्य हुआ।
प्रथानन्तर-जम्बू द्वीप के कौशल नामक देश में अयोध्या नामकी एक नगरी है। वह नगरी अत्यन्त रमणीक तथा भव्य जनोंसे भरी हुई है। वहां के राजा का नाम वज्रसेन था और उनकी पत्नी का नाम शीलवती था। स्वर्ग से चयकर वह देव इन दोनोंका हरिपेण नामक पुत्र हुया । राजाने बड़े प्रानन्दके साथ पुत्र का जन्मोत्सव मनाया। हरिपंण कुमार अवस्थामें ही राजनीति के साथ-साथ जैन सिद्धान्तोंका बड़ा जानकर हुआ। वह रूप, गुण कान्ति आदि सभी गुणों से भूषित था। उत्तम वस्त्राभूषणोंसे हरिषेणकुमार देवके समान सुन्दर प्रतीत होता था।
पश्चात् यौवन अवस्थामें कुमारका विवाह अनेक राज्य कन्यानोंके साथ हुआ। पिताने पुत्रको योग्य समझ कर राज्य-पद समर्पित कर दिया। वह बड़े प्रानन्द के साथ राज्य लक्ष्मी का उपभोग करने लगा। वह गृहस्थ धर्म की सिद्धि के उद्देश्य से बड़ी शुद्धता पूर्वक सम्यकत्व का पालन करने लगा। अष्टमी और चौदश के दिन वह पाप कमों को त्याग कर प्रोषध प्रतका पाचरण
१. जिम के पुण्य फल से वह अयोध्या नगरी के राजा वजसेन की रानी दोलवती से हरिषेण नाम का बड़ा बुद्धिमान राजकुमार हुा । राजनीति के साथ-साथ जैन सिद्धान्तों का बड़ा विद्वान था। मैं श्रावक धर्म को भली भांति पालता था। एक दिन विचार कर रहा था कि मैं कौन है ? मेरा शरीर क्या है ? स्त्री पुत्र आदि क्या मेरे हैं और कुछ मेरा लाभ कर सकते हैं ? मेरी तृषणा, किस प्रकार शान्त होगी? तो मुझे संसार महाभयानक दिखाई पड़ा, वैराम्प भाव जाग्रत हो गए और थी श्रुतसागर नाम के निग्रंथ मुनि मे दीक्षा लेकर मैं जैन साधु हो गया । दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तपरूप चारों आराधनामों का सेवन करके समाधिमरण से प्राणों का परित्याग किया !
३२६