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चारणऋद्धिधारी मुनि गुणसागर जी सिंह को पूर्व भव का उपदेश दे रहे हैं।
जंगल में सिंह हिरण को पकड़े है । उसी समय आकाश मार्ग से जाते
हुये मुनिराज ने जान लिया कि यह सिंह मारीच का जीव मागे तीर्थकर होने वाला है, नीचे उतर कर सम्बोधन दे रहे हैं।