________________
केवलज्ञान-फाल्गुन सुनी एकादशी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में केवल शान प्राप्त हुआ। मोक्षकल्याणक-माघकृष्ण चौदरा के दिन पूर्वाह्न में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में १०० मुनियों के साथ मोक्ष गये।
भगवान बुपभदेव के पूर्व १० भव यह हैं-१ जयबर्मा, २ महाबलविद्याधर ३ ललितांग देव ४ बजजघराजा ५ भोग भूमिया ६ श्रीधर ७ सुविध (नारायण) ८ अच्युत स्वर्ग का इन्द्र ६ वचनाभि चक्रवर्ती इस भव में सोलह कारण भावना के बल से तीर्थकर प्रकृति का बंध किया, वहां से चयकर भरत क्षत्र के सुकौशल देश की अयोध्या नगरी में अन्तिम कुलकर नाभिराजा के यहां मरुदत्री माता को कोख से प्रथम तीर्थकर के रूप में जन्म लिया । अापका शरीर ५०० धनूप ऊंचा था, आयु चौरासी लाख पूर्व यो शरीर का रंग तपे हुए सोने के समान था । शरीर में १००८ शुभ लक्षण थे। आपका नाम श्री ऋषभनाथ रखा गया। वामनाय तथा प्रादिनाथ भी आपके दूसरे नाम हैं। आपके दाहिने पैर में बैल का चिह्न प्रसिद्ध हमा और इसलिये नाम भी वृषभनाथ पड़ा।
प्रापका २० लाख पूर्व समय कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ। आपका (यशस्वाती और सुनंदा) नामक दो राज पुत्रियों से विवाह हमा । ६२लाम पूर्व तक गज्य किया। आपकी रानी यशस्वती के उदर से भरतादि ६९ पुत्र तथा ब्राह्मी नामक कन्या हुई और सुनन्दा रानी से बाहुबली नामक एक पुत्र और सुन्दरी नामक कन्या हुई।
अपने राज्य काल में जनता को खेती बाडी, व्यापार अस्त्र-शस्त्र चलाना, वस्त्र बनाना, लिखना पढ़ना, अनेक प्रकार के कला कौशल आदि सिखलाए। अपने पुत्र भरत वो नाट्य कला, बाहुबलो को मल्ल विद्या, बाह्मि को अक्षर विद्या, मुन्दरी को अङ्क विद्या, राजनीति आदि सिखलाई।
८३,००००० लाख पूर्व प्रायु बीत जाने पर राज सभा में नृत्य करते हुए नीलांजना नामक अप्सरा को मृत्यु देखकर आपको संसार, शरीर और विषय भोगों से वैराग्य हुमा नव भरत को राज्य देकर आपने पंच मुष्टियों से केशलोंच करके सिद्धों को नमस्कार करके स्वयं मुनि दीक्षा ली। छ मास तक आएगान में निगम रहे। हिरल: मास पीछे जत योग से उठ तो आपको लगातार छ: मास तक विधि अनुसार प्राहार प्राप्त नहीं हुमा। इस तरह एक वर्ष पीछे हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने पूर्वभव के रमण मे मनियों को आहार देने की विधि जानकर आप को ठीक विधि से ईख के रस द्वारा पारना कराई।
एक हजार वर्ष तपस्या करने के बाद आपको केवलज्ञान हुआ। तदनन्तर १,००० हजार वर्ष कम १०,०००० लाख पूर्व नक आप समस्त देशों में बिहार करके धर्म प्रचार करते रहे। आपके उपदेश के लिये समवशरण नामक विशाल सभा मंडप बनाया जाता था । अन्त में आपने कैलाश पर्वत से पर्यकासन (पलथी) से मुक्ति प्राप्त की।
विशेपार्थ-आपका ज्येष्ठ पत्र भरत, भरत क्षेत्र का पहला चक्रवर्ती था उस ही के नाम पर इस देश का नाम भारत प्रख्यात हुभा । अापका दूसरा पुत्र बाहुबली प्रथम कामदेव था तथा चक्रवर्ती को भी युद्ध में हराने वाला महान बलवान था। उसने मुनि दीक्षा कर निश्चल खड़े रह कर एक वर्ष तक निराहार रहकर तपस्या की और भगवान वृषभनाथ से भी पहले मुक्त हुआ।
भगवान बृषभनाथ का पौत्र (नाति, पोता) मरीचिकुमार अनेक भव बिताकर अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर हना। मापकी पुत्री ब्राह्मी, मुन्दरी प्रायिकामों की नेत्री थी । आपके वृषभ आदि ८४ गणधर थे।
आप सुपमा टुपमा नामक तीसरे काल में उत्पन्न हुए और मोक्ष भी तीसरे ही काल में गए । जनता को प्रापने क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन तीन वर्गों में विभाजित करके जीवन निर्वाह की रीति बतलाई। इस कारण प्रापको आदि ब्रह्मा तथा १५ दां कुलकर भी कहते हैं।
भगवान अजितनाथजी स ब्रह्मनिष्ठः सममित्र शत्र विद्या विनिर्वान्त कषाय दोषः ।
लव्धात्म लक्ष्मी रजितो जितात्मा जिनः श्रिय मे भगवान विधत्तम् ॥-समन्तभद्र वैमात्म स्वरूप में लीन, शत्र और मित्रों को समान रूप से देखने वाले, सम्यकज्ञान से कषाय रूपी शयों को हटाने