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समय के लोगों की कठिनाइयों का प्रतिकार किया अवधिज्ञान से जानकर उनकी समस्या सुलझाई और कुलकर अवधिज्ञानो तो नहीं थे किन्तु विशेष ज्ञानो थे, जाति स्मरण के धारक हुए थे उन्होंने उस समय कल्पवृक्षों की हानि के द्वारा लोगों को कठिनाईयों को जानकर उनका प्रतिकार करके जनता का कष्ट दूर किया । कुलकरों का दूसरा नाम मनु भो है। इसका खुलासा इस . प्रकार है।
प्रतिश्रुति कुलकर सूपम दूपमा नामक नीसरे काल में पल्य का पाठवां भाग प्रमाण समय जब शेष रह जाता तब स्वर्ण समान कांति वाले प्रतिश्रति कुलकर उत्पन्न हुए। उनकी आयु पल्य के दशवें भाग प्रमाण थी उनका शरीर अठारह सौ १८०० धनूप ऊंचा था और उनकी देवी (स्त्री) स्वयंप्रभा थी।
उस समय ज्योतिरांग कल्पवृक्षों का प्रकाश कुछ मंद पड़ गया था इसलिये सूर्य और चन्द्र दिखाई देने लगे, शुरू में जब चन्द्र और सूर्य दिग्वलाई दिगे वह प्राषाढ़ की पूर्णिमा का दिन था । यह उस समय के लिये एक अद्भुत विचित्र घटना थी, क्यों कि उससे पहले कभी ज्योतिरांग कल्पवृक्षों के महान प्रकाश के कारण सूर्य चन्द्र ग्राकाश में दिखाई नहीं देते थे। इस कारण उस समय के स्त्री पुरुष सूर्य चन्द्र को देखकर भयभीत हुए कि यह क्या भयानक चीज दीख रही हैं, क्या कोई भयानक उत्पात होने वाला है।
तब ये प्रतिधति कुलकर ने अपने विशेष ज्ञान से जानकर लोगों को समझाया कि ये साकाश में सूर्य चन्द्र नामक ज्योतिषी देवों के प्रमामय विमान हैं, ये सदा रहते हैं। पहले ज्योतिरांग कल्पवृक्षों के तेजस्वी प्रकाश से दिखाई नहीं देते थे किन्तु अब ऋल्पवृक्षों का प्रकाश फीका हो जाने से ये दिखाई देने लगे हैं। तुमको इनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं,. ये तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं करेंगे। प्रतिति की प्राश्वासन भरी बात सुनकर जनता निर्भय, और संतुष्ट हुई ।
सन्मति कुलकर प्रतिधति का निधन हो जाने पर तृतीय काल में जब पल्य का अस्सीवां भाग शेष रह गया तब दूसरे कुलकर सन्मति उत्पन्न हए । उनका शरीर १३०० सौ धनुष, ऊंचा था और प्रायु पल्य के सोवभाग प्रमाण थी, उनका शरीर सोने के समानकांतिवाला था। उनकी स्त्री का नाम यशरबती था।
उनके समय में ज्योतिरांग (तेजांग) कल्पवृक्ष प्रायः नष्ट हो गये अतः उसका प्रकाश बहुत फीका हो जाने से ग्रह, नक्षत्र तारे भी दिखायी देने लगे। इन्हें पहले स्त्री-पुरुषों ने कभी नहीं देखा था, अतः लोग इन्हें देख कर बहुत घबराये कि यह क्या है, क्या उपद्रव होने वाला है। तब सन्मति कुलकर ने अपने विशिष्ट ज्ञान से जानकर जनता को समझाया कि सर्य चन्द्रमा के समान ये भी ज्योतिषी देवों के विमान हैं, ये सदा आकाश में रहते हैं। पहले कल्पवृक्षों के तेजस्वी प्रकाश के कारण दिखाई न देते थे, अब उनकी ज्योति बहत फीकी हो जाने से ये दिखाई देने लगे हैं। ये तारे तुमको कुछ हानि नहीं करेंगे। सन्मति की विश्वासजनक वात सुनकर लोगों का भय दूर हुमा और उन्होंने सन्मति का बहुत यादर सत्कार किया।
क्षेमंकर कुलकर सन्मति की मृत्यु हो जाने पर पत्य के ८०० वें (2.) भाग बीत जाने पर तीसरे कुलकर 'क्षेमंकर उत्पन्न हए उनकी पायू (.) पल्य थी, शरीर ८०० धनुष ऊंचा था और उनका रंग सोने जैसा था। उनकी देवो (पत्नी) का नाम "सुनन्दा" था।
उनके सगय में सिंह, बाघ आदि जानवर दृष्ट प्रकृति के हो गये, उनकी भयानक आकृति देखकर उस समय स्त्री पुरुष भयभीत हुए। तब क्षेमंकर कुलकर ने सबको समझाया कि अब काल दोष से ये पशु सौम्य शान्त स्वभाव के नहीं रहे, इस कारण थाप पहले की तरह इनका विश्वास न करें, इनके साथ क्रीड़ा न करें, इनसे सावधान रहें । क्षेमंकर की बात सुनकर स्त्री-पुरुष सचेत और निर्भय हो गये।
.. .क्षेमंधर कुलकर क्षेमंकर कुलकर के स्वर्ग चले जाने पर पल्य के.८ हजार. ) भाग बीत जाने पर चौथे कुलकर क्षेमंधर नामक मन (कलकर) हुये । उनका शरीर ७७५ धनुष ऊंचा था और उनकी आयु पल्प के दश हजारवें ( ) भाग प्रमाण थी, उन की देवी "बिमला' नामक थी।
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