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२. अन्य द्वीप सम्बन्धी
नाम
लम्बाई । चीड़ाई | गहराई ! नि. प. रा. वा. ॥३॥सू.। | ह.पु.१५॥ | त्रि.सा.
। गा. । व. पु. प.
ज.प.अ.
गा.
। यो. | यो. धातकी खण्ड के पक्ष जम्बूद्वीप से दूने
यो.
३३।५।१६५१२३
प्रादि द्रह नन्दीश्वर द्वीप की |
बापियां
१००० । ६०
३५०-१६८।११। १६५७ । ६७१
में पकाये जाते हैं।
कोयले और उपलों की आग में जल रहा है महान शरीर जिनका, ऐसे में नारकी जीव शीतल जल समझ दौड़कर वतरिणी नदी में प्रवेश करते हैं।
उस वतरिणी नदी में कतरी (कैंची) के समान तीक्ष्ण जल के आकार में परिणत हुए दूसरे नारकी उन नारकियों के शरीरों को दुस्मह अनेक प्रकार की पीड़ाओं को पहुंचाते हुए वेदते हैं।
वतरिणी नदी के जल से नारकी कछुया, मेंढक और मगर प्रभूति जलचर जीवों के विविध रूपों को धारण एक दूसरे को भक्षण करते हैं।
पश्चात वे नारकी विस्तीर्ण शिलाओं के बीच में बिलों को देखकर झटपट उनमें प्रवेश करते हैं, परन्तु वहां पर भी सहसा विशाल ज्वालाभों वाली महान् अग्नि उठती है ।
पुनः जिनके सम्पूर्ण अग तीक्षण अग्नि की ज्वालाओं के समूहों से जल रहे हैं। ऐसे वे ही नारकी शीतल छाया जानकर असिपत्र बन में प्रवेश करते हैं।
वहां पर विविध प्रकार के वृक्षों के गुच्छे, पत्र और फलों के पुज पवन से ताडित होकर उन नारकियों के ऊपर दुष्प्रेक्ष्य (अदर्शनीय वादण्ड के समान गिरते हैं।
इसके अतिरिक्त उस असिपत्रवन से चक्र, वाण, कनक (शलाकाकार ज्योतिः पिंड) तोमर (बारराविशेष), मुद्गर, तलवार, भाला. मसल तथा और भी अस्त्र-शस्त्र उन नारकियों के सिर पर गिरते हैं।
अनन्तर, जिनके शिर छिद् गये हैं, हाथ खण्डित हो गये हैं, नेत्र अधित हैं, आंतों के समूह लंबायमान हैं, और शरीर खून से लाल तथा भवानक हैं. ऐसे वे नारकी अशरण होकर उस चन को भी छोड़ देते हैं।
गद्ध, गरुड, काक तथा और भी वज्रमय मुखवाले व तीक्ष्ण दांतों वाले पक्षी नारकियों के शरीर को काटकर उन्हें खाते हैं।
अन्य नारकी उन नारकियों के अग और उपांगों की हड्डियों का प्रचंड घातों से चूर्ण करके उत्पन्न हुए विस्तृत धावों में बहत्त क्षार पदार्थों को डालते हैं।
बावों में क्षार द्वषों के डालने से यद्यपि वे नारकी करुणापूर्ण बिलाप करते हैं और चरण युगल में लगते हैं, तथापि अन्य नारकी उस प्रकार खिन्न अवस्था में ही उन्हें खण्ड-खण्ड करके चुल्हे में डालते हैं।
इतर नारकी पर स्त्री में आसक्त रहने वाले जीवों के शरीरों में अतिशय तपी हुई सोहमय युक्ती स्त्री की मूर्ति को दृढ़ता से लगाते हैं और उन्हें जलती हुई आग में फेंकते हैं ।
जो पूर्व भव में मांस भक्षण के प्रेमी थे उनके पारीर के मांस को काटकर अन्य मारकी रक्त से भीगे हुए उन्हीं के मांस खंडों को उनके ही मुखों में डालते हैं।
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