________________
५. रुचकर पर्वत व उसके कूट
विस्तार
त्रि.प.।५॥ | रा.वा.।३। ह.प.।। | त्रि.सा.
नाम
ऊंचाई | गहराई
मल
मध्य
| ऊपर |
गा.
३५-पृ.पं.
गा. |
गा..
--.-.-
.---
पर्वत
१९६।२३
दृष्टि सं०१८४००० | १००० ८४००० ८४०००८४००० दृष्टि सं०२ ८४००० १००० ४२००० इसके कूटदष्टि सं० १ | मानुषोत्तर की दृष्टि सं० २ वत् दृष्टि सं० २ ५००
| ७५० | ५०० ३२ कूट
१००० | १००० । १०००
X
X
१६६,१७१ २००।२०। ७०१
१६६।२५ | x
X
X
प्रयम पथ्वी के असंभ्रात इन्द्रक में नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण चार अनुष और सत्ताईस अंगुल है। असंभ्राल प. में ४. २७
विभ्रांत नामक पटल में चार धनुप, तीन हाथ और तेईस अंगुल के आधे अर्थात् साढ़े ग्यारह अंगुल प्रमाण उत्सेध है। विभ्रान्त, प.
विभ्रातनाम में द. ४. ह. ३ ग्रं ११३।
प्रथम पृथ्वी के नन इन्द्रक में शरीर का उत्सेध पांच धनु, एक हाथ और बीस अंगुल प्रमाण कहा गया है। तप्त प. में दं.५, ह. १ .२०
अतित नामक पटल में नारकियों के शरीर की ऊंचाई छह धनुष और अर्ध अंगुल सहित अंगुल प्रमाण जानना चाहिये । असित प. में
प्रथम पृथ्वी के वकान्त नामक पटल में शरीर का उत्सेध छह धनुष, दो हाथ तेरह अंगुल है। बकान्त प. में दं. ६, ह. २,
अं क अवक्रान्न नामक पटल में सात धनुष, और साढ़े इक्कीस अंगुल प्रमाण शरीर का उत्सेध है । अवक्रांत प. में दं ७, अं२१।
प्रथम राबी के विक्रान्त नामक अन्तिम इन्द्रक में शरीर का उत्सेध सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है। विकात प. में दं.७.ह. 3. अ. ६..
बंशा पानी में दो हाथ, बीस अगुल और ११ से भाजित दो भाग प्रमाण प्रत्येक पटल में बडे होती है । इस वृद्धि को मुख्य अर्यात प्रथम पथ्वी के उत्कृष्ट उस्सेध प्रमाण में उत्तरोत्तर मिलाते जाने से क्रमशः कितीय पृथ्वी के प्रथमादि पटलों का उत्सेध का प्रमाण निकलता है। है. २,जे, २०११
द्वितीय पृथ्वी के (म्तनक नामक प्रथम इन्ट्रक में) नारकियों के शरीर का उरसेप, आठ धनुष, दो हाय और ग्यारह से भाजित चौबीस अंगुल प्रमाण है।
स्तनक प. में दं. ८, ह. २, अं.१३।। दुसरी पृथ्वी के (तनक नामक द्वितीय पटल में) नी अमुष, बाईस अंगुल और ग्यारह से भाजिस चार भाग प्रमाण शरीर का उरसेष है। तनक प. में दं. ६. अं. २२ ।
मनक इन्द्रक में जीवों के शरीर का उत्सेघनी धनुष, तीन हाथ और म्यारह से भाजित दो सौ बार अंगुस प्रमाण है। मनकप में है. है. ३ अ, २६ (१८६५)।
वनक प, में ई.१०. ह. २, अं.१४