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ऊंचाई व
| ति. पा.
पादिम
'चौड़ाई
दक्षिण उत्तर विस्तार मध्यम अन्तिम
।
४/गा.
दोनों बाह्य विदेशों के वक्षार- ' चित्र व देवमाल कट
५१५७३८३५३
५१९२१६६
नलिन व नागकट
५३८२६८
५३५७४५...
५३६२२२२१
पद्म व सूर्यकूट
५५७७९७.१३
५५८२७४२३
५५८७५१३३३
एकशैल व चन्द्रनाग
५७५६०३२१२
१८८२८०१३
देखें पूर्वोक्त सामान्य नियम
त्रि.सा. १९३१-६३३
दोनों अभ्यन्तर विदेहों के
वक्षार श्रद्धावान व प्रात्मांजन |
२८५४५५३१६
२८४६७८१३३
२८४५०१०१६
अंजन व विजयवान्
२६५९२६३६३
२६५४४६३१३
२६४६७२३१६
पाशीविष बर्वश्रवण
२४५४४३३१३
| २४६३९७१
२२६८६८१६३
| २४५६२०३३३ । २२६३६१६४
सुखावह व त्रिकूट
२२५६१४४३
मेधा पृथ्वी में प्रकीर्णक बिलों का ऊध्वर्ग अन्तराल तीन हजार दो सो अड़तालीस योजन और पचानसौ धनुष है । ३२४८ बो. ५५०० दण्ड ।
चतुर्थ पृथ्वी में श्रेणी बद्ध बिलों का अन्तराल नीन हजार छह मौ चौंसठ योजन और नो से भाजित जनहत्तर हजार पाँच सौ अनुप प्रमाण है। ३६६४ यो. ६.९५...- दण्ड ।
पांचवीं पृथ्वी में प्रकीर्णक बिलों का अन्तराल चवालीस सौ मत्तान योजन और छह हजार पाँच सौ धनुष प्रमाण है । ४४९७ यो, ६५०01
(छठी पृथ्वी में प्रवीणक बिलों का अन्तराल दह हजार नो सौ छयानवे योजन और पचहत्तरसो घनुप है । ६६६६ यो. ७५०० दण्ड 1)
इस प्रकार यह प्रकीर्णक विनों का अन्नरान स्वस्थान में समझना चाहिए। पर स्थान में जो इन्द्रक त्रिली का अन्तराल कहा जा चका है, उमी को यहाँ पर भी कहना चाहिए ।
इस प्रकार प्रकीर्णक बिलों का अन्तराल समाप्त हुआ। इस प्रकार निवास क्षेत्र समाप्त हुआ।
धर्मा पृथ्वी में मारकी जीव संरूपात आयु के धारक हैं। इनकी संख्या निकालने के लिये मुणाकार घनांनुल के द्वितीय वर्म मूल से कुछ कम है । अर्थात् इस गुणकार से जम श्रेणी को गुरणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो उतने नारकी जीव धर्मा पृथ्वी में विद्यमान हैं।
श्रेणी घांगुल के २ मरे वर्ग मूल से कुछ कम-धर्मा पृ० के नारकी।