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कण्डलवर पर्वत व टीप
वृष्टिभेव विविद्याओं वाले सिद्धायतन फूटों को कोई आचार्य मानते हैं और कोई महीं
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BAB 2
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[२] ३०पो० से
बाह्यार्थ
कुण्डलवर पर्वव
१०.३० WW१००० पो. 7
द्वीप
कुण्डलवर
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१० द्वीप
सागर
अभ्यन्तर कुण्डलवर दीप
विस्तार विषयक दृष्टिभेद (दे०लोक / ६-५-४)
महाप्रभ
महादेव
सुक्ष्म कूट
पाँचवी पृथ्वी में दो सौ पंसठ छठी में तिरमल और अन्तिम
पद्मोत्तर देन रजअन फूट
देव
सातवी पृथ्वी
شاری
वामन्य
उत्कृष्ट पाताल
क् कूट विशिष्ट देन
वज्रम कूट उपचार देव
किनक कूट महाशिव
कनकप्रभ कूट
मदाबादेव
में सिर्फ पाँच ही एक व श्रेणीबद्ध बिल हैं, ऐसा जानना
चाहिये । २६५ ६३ ५ ।
सम्पूर्ण पृथ्वियों के इन्द्रक व श्रेणीबद्ध बिलों के प्रमाण को निकालने के लिये आदि पांच चम आठ और गच्छ का प्रमाण उनंचास है, यह निश्चित समझना चाहिये ।
इष्ट से अधिक पद को चत्र से गुणा करके उसमें से एक अधिक इष्ट से गुणित चय को घटा देने पर जो शेष रहे उससमें दुगने मुख को जोड़कर गच्छ के अर्ध भाग से गुणा करने पर संकलित धन आता है।
उदाहरण– (४६+ ७××) - (०-१-१-) + (१x१) x
१२०
= ४४० – ६४ ÷ १०५ ६६५३ सातों पुचियों का सं